satuani: फसलों के सम्मान का पर्व सतुआनी, जानें इस त्योहार के बारे में खास
Satuani festival 2023: सतुआनी के दिन मिथिला के लोग जुड़शीतल का त्योहार मनाते हैं तो वहीं बंगाल में लोग इस पोहेला या पोएला वैशाख के तौर पर सेलिब्रेट करते हैं. वहीं असम में बोहाग बिहू, केरल में विशु, ओडिशा में महाविषुव संक्रांति और उत्तराखंड में विखोरी महोत्सव के रूप में पूरा देश इस दिन त्योहारों के इस आनंद में डूब जाता है.
Satuani festival 2023: हिंदी महीने के कैलेंडर में वैशाख का महीना जब सूरज अपने उच्च ताप पर होता है. ऐसे में प्रकृति के अपने चरम उष्मा को सहने की क्षमता लोगों में हो इसके लिए लोग प्रकृति के द्वारा वरदान नई फसल को सम्मान देने की कोशिश करते हैं. इस समय जो भी फसल तैयार होकर आती है उसमें प्रकृति के नियम के विरुद्ध उष्मा की जगह शीतलता का प्रवाह होता है. ऐसे में जहां पंजाब और हरियाणा के लोग वैशाखी के रूप में इसे मनाते हैं वहीं इसे बिहार, झारखंड और पूर्वांचल के लोग सतुआनी त्योहार के रूप में मनाते हैं.
इस त्योहार में लोग जौ, चना, मकई, मडुआ के सत्तु के साथ ताप से बचने के लिए कच्चे आम की कैरी की चटनी, प्याज और नमक के साथ मिर्च और अचार खाते हैं. आपको बता दें कि वैशाख के शुरुआत के साथ वैशाखी फलों जैसे तरबूज, खरबूज, बेल, ककड़ी, खीरा भी सुहागन महिलाएं इस दिन बांटती हैं और फिर इसे आज से ही खाना शुरू करती हैं.
कितना वैज्ञानिक है ना इस त्योहार का महत्व, आपको बता दें कि इसी दिन से मिथिला के लोग जुड़शीतल का त्योहार मनाते हैं तो वहीं बंगाल में लोग इस पोहेला या पोएला वैशाख के तौर पर सेलिब्रेट करते हैं. वहीं असम में बोहाग बिहू, केरल में विशु, ओडिशा में महाविषुव संक्रांति और उत्तराखंड में विखोरी महोत्सव के रूप में पूरा देश इस दिन त्योहारों के इस आनंद में डूब जाता है.
आज ही के दिन सूर्य अपना राशि परिवर्तन कर मेष राशि में प्रवेश कर जाते हैं तो और इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है. संक्रांति का सीधा सा मतलब है अपने अंदर की क्रांति जो आपके मन विचार और आचरण को शुद्ध करता है. ये सभी त्योहार हमारे खेती-किसानी के सेलिब्रेशन के तौर पर मनाते हैं. बता दें कि हिंदू मान्यता है कि इसी महीने में गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ ऐसे में इस दिन गंगा स्नान का भी खास महत्व है. इस समय रबी फसल की कटाई चरम पर होती है. इसका सेलिब्रेशन इसके तौर पर भी होता है. मिथिला में तो यह मैथिलि कैलेंडर का पहला दिन है ऐसे में जुड़शीतल पर्व के तौर पर इसे मनाया जाता है.
वैसे आपको बता दें कि इस सत्तू की कहानी आज की नहीं है भगवान बुद्ध के समय में भी इसके सेवन की बात सामने आई है तो वहीं पाणिनी ने भी अपने अष्टाध्यायी में सत्तू के बारे में जिक्र किया है. जिसमें चावल को भुनकर सत्तू के रूप में प्योग किया जाता था. सत्तू को संपूर्ण आहार के तौर पर माना गया है. ऐसे में शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने में इस सत्तू का इस्तेमाल लाभकारी है.
ऐसे में सत्तू को पहले इष्ट देव को अर्पित कर फिर इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की परंपरा है. यह पर्व वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की नवमी को मनाया जाता है. ऐसे में भगवान को अर्पण कर इसके सेवन से लू के प्रभाव से बचा जाता है. इस पर्व के एक दिन पहले मिट्टी के घड़े में जल को ढंककर रखा जाता है और अगल दिन इसे पूरे घर में छिड़का जाता है. इस दिन ही बासी खाना खाने की भी परंपरा है.