पटनाः Sharad Purnima Vrat Vidhi:सनातन परंपरा में शरद पूर्णिमा काफी महत्वपूर्ण तिथि है, इसी तिथि से शरद ऋतु का आरम्भ होता है. इस दिन चन्द्रमा संपूर्ण और सोलह कलाओं से युक्त होता है. इस दिन चन्द्रमा से अमृत की वर्षा होती है जो धन, प्रेम और सेहत तीनों देती है. प्रेम और कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण श्री कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था. इस दिन विशेष प्रयोग करके बेहतरीन सेहत, अपार प्रेम और खूब सारा धन पाया जा सकता है. 


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पुराणों में कहा गया है रास पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा को पुराणों में रास पूर्णिमा भी कहते हैं. इसी दिन भगवान कृष्ण ने महारास रचाकर दिव्य प्रेम का नृत्य किया था. शास्त्रनुसार केवल शरद पूर्णिमा का चंद्रमा ही 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अपनी विशेष किरणों से अमृत वर्षा करता है. अतः इस रात चांदी के पात्र में गो दूध, घृत व अरवा चावल से बनी खीर चांदनी में 3 प्रहर रखने से वह औषधि बनकर 32 प्रकार के रोगों को ठीक करती है. प्रत्येक व्यक्ति के गुण के आधार पर कुछ कलाएं होती हैं. अगर किसी में 16 कलाएं हों तो वो संपूर्ण ब्रह्म बन जाता है. भगवान राम 12 कलाओं से युक्त थे परंतु भगवान कृष्ण 16 कलाओं से परिपूर्ण थे इसलिए कृष्ण को विष्णु का पूर्ण अवतार माना जाता है.


शरद पूर्णिमा पूजा विधि
पूर्णिमा के दिन सुबह में इष्ट देव का पूजन करना चाहिए.
इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए.
ब्राह्माणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए.
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है.
रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए.
मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है.


चंद्र मंत्र


ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:
ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम