पटनाः Shattila Ekadashi Mata Vrat Katha: माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह एकादशी तिल के महत्व और 6 प्रकार के उपयोगों के कारण षटतिला कहलाती है. सभी एकादशी तिथियां भगवान विष्णु को समर्पित हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल में इस तिथि का सही अधिकार और आधिपत्य किसके पास है? शायद आप इस प्रश्न से चौंक गए होंगे. 


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भगवान विष्णु से हुईं उत्पपन्न
असल में सच्चाई यही है कि किसी भी एकादशी तिथि के असल स्वामी भगवान विष्णु न होकर एक देवी हैं. यह देवी कन्या के रूप में जानी जाती हैं और उन्हीं का नाम एकादशी है. असल में यह भगवान विष्णु में समाहित सोलह कलाओं में से एक ग्यारहवीं कला है, जिसे योगमाया कहा जाता है. वही हैं. भगवान विष्णु के आज्ञाचक्र में निवास करते हुए यही देवी सृष्टि का संचालन करती हैं और तिथियों का निर्धारण भी करती हैं. इन्हीं एकादशी देवी के लिए हर माह में दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है.  देवी ने ही भगवान विष्णु को अपनी तिथि सौंपकर इस दिन उन्हें उनकी पूजा का अधिकार दिया है. 


रोचक है देवी की कथा
देवी एकादशी की उत्पत्ति की कथा भी रोचक है. एक बार एक दैत्य था मूरा. मूरा ने तीनों लोकों पर विजय पाई और देवताओं के स्वर्ग से निकाल कर अनीति और अन्याय को बढ़ावा देने लगा. उसे वरदान था कि वह एक ऐसी कन्या के हाथ से ही मरेगा, जो कि अजन्मी हो. देव-दानव युद्ध होने पर भगवान विष्णु ने उसका पीछा किया, लेकिन वह उसे वरदान के कारण मार नहीं सकते थे. ऐसे में भगवान बद्रिका स्थित सिंहवती गुफा पहुंच गए और विश्राम करने लगे. मद में चूर दानव उन्हें मारने पहुंचा. उस समय योगनिद्रा में लीन भगवान दैत्य के अंत के विषय में ही सोच रहे थे, इतने में उनके आज्ञा चक्र से एक कन्या प्रकट हुई और उसने मूरा का वध कर दिया. यही कन्या एकादशी थी. 


जरूर करें एकादशी माता की पूजा
भगवान ने एकादशी तिथि को वरदान दिया कि जो भी एकादशी के दिन मेरा नाम लेते हुए तुम्हारे व्रत को धारण करेगा, उसे वैकुंठ जरूर मिलेगा. 
उपवास को करने से जहां हमें शारीरिक पवित्रता और निरोगता प्राप्त होती है, वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है. इससे यह भी सिद्ध होता है कि मनुष्य जो-जो और जैसा दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे फल भी वैसा ही प्राप्त होता है, अतः धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ हमें दान आदि अवश्य करना चाहिए. शास्त्रों में वर्णित है कि बिना दान किए कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं होता. ऐसे में आज षटतिला एकादशी के दिन भले ही आप भगवान विष्णु की पूजा आरती करें, लेकिन एकादशी माता का भी अनुष्ठान जरूर करें.एकादशी माता की आरती भी यहां मौजूद है. 


॥ एकादशी माता की आरती ॥
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी,जय एकादशी माता.


विष्णु पूजा व्रत को धारण कर,शक्ति मुक्ति पाता॥


ॐ जय एकादशी...॥


तेरे नाम गिनाऊं देवी,भक्ति प्रदान करनी.


गण गौरव की देनी माता,शास्त्रों में वरनी॥


ॐ जय एकादशी...॥


मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना,विश्वतारनी जन्मी.


शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा,मुक्तिदाता बन आई॥


ॐ जय एकादशी...॥


पौष के कृष्णपक्ष की,सफला नामक है.


शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा,आनन्द अधिक रहै॥


ॐ जय एकादशी...॥


नाम षटतिला माघ मास में,कृष्णपक्ष आवै.


शुक्लपक्ष में जया, कहावै,विजय सदा पावै॥


ॐ जय एकादशी...॥


विजया फागुन कृष्णपक्ष मेंशुक्ला आमलकी.


पापमोचनी कृष्ण पक्ष में,चैत्र महाबलि की॥


ॐ जय एकादशी...॥


चैत्र शुक्ल में नाम कामदा,धन देने वाली.


नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में,वैसाख माह वाली॥


ॐ जय एकादशी...॥


शुक्ल पक्ष में होयमोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी.


नाम निर्जला सब सुख करनी,शुक्लपक्ष रखी॥


ॐ जय एकादशी...॥


योगिनी नाम आषाढ में जानों,कृष्णपक्ष करनी.


देवशयनी नाम कहायो,शुक्लपक्ष धरनी॥


ॐ जय एकादशी...॥


कामिका श्रावण मास में आवै,कृष्णपक्ष कहिए.


श्रावण शुक्ला होयपवित्रा आनन्द से रहिए॥


ॐ जय एकादशी...॥


अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की,परिवर्तिनी शुक्ला.


इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में,व्रत से भवसागर निकला॥


ॐ जय एकादशी...॥


पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में,आप हरनहारी.


रमा मास कार्तिक में आवै,सुखदायक भारी॥


ॐ जय एकादशी...॥


देवोत्थानी शुक्लपक्ष की,दुखनाशक मैया.


पावन मास में करूंविनती पार करो नैया॥


ॐ जय एकादशी...॥


परमा कृष्णपक्ष में होती,जन मंगल करनी.


शुक्ल मास में होयपद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥


ॐ जय एकादशी...॥


जो कोई आरती एकादशी की,भक्ति सहित गावै.


जन गुरदिता स्वर्ग का वासा,निश्चय वह पावै॥


ॐ जय एकादशी...॥


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