श्री गणेश ने किया कामासुर, क्रोधासुर और अहम का वध, जानिए इनके अर्थ
Ganesh Chaturthi 2022: गणेश जी को बुद्धि और चातुर्य का देवता कहा जाता है. इसके अलावा वह विघ्नहर्ता भी कहे जाता है. जैसे समय-समय पर भगवान शिव और भगवान विष्णु ने अलग-अलग अवतार लेकर दैत्यों-दानवों से पृथ्वी की रक्षा की और धर्म की स्थापना की.
पटनाः Ganesh Chaturthi 2022: गणेश जी को बुद्धि और चातुर्य का देवता कहा जाता है. इसके अलावा वह विघ्नहर्ता भी कहे जाता है. जैसे समय-समय पर भगवान शिव और भगवान विष्णु ने अलग-अलग अवतार लेकर दैत्यों-दानवों से पृथ्वी की रक्षा की और धर्म की स्थापना की. ठीक इसी तरह गणेश जी ने भी समय-समय पर अवतार लेकर असुरों और राक्षसों का वध किया है. इन असुरों में कामासुर, क्रोधासुर और अहम असुर प्रमुख हैं. श्रीगणेश ने इन्हें जिस तरह वध करके नियंत्रित करता है, वह जीवन में एक सीख भी देता है. जानिए इनकी कहानी.
क्रोधासुर को नियंत्रित
समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो शिव उन पर काम मोहित हो गए. उनका शुक्र स्खलित हुआ, जिससे एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई. इस दैत्य का नाम क्रोधासुर था. क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्मांड विजय का वरदान ले लिया. क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए. वो युद्ध करने निकल पड़ा. तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया. क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता. क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया.
कामासुर का वध
भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया. उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर. कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया. इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए. तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया. तब भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया. विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए. उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया.
अहम का अंत
एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया. राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया. उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई. उसका नाम था अहम. वो शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें गुरु बना लिया. वह अहम से अहंतासुर हो गया. उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए. उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया. तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया. उनका वर्ण धुंए जैसा था. वे विकराल थे. उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं. धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया. उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की.
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