Patna: बिहार में पिछले 16 साल से सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी JDU में बदलाव के संकेत दिखने लगे हैं. ऐसा लग रहा है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने सिर्फ अध्यक्ष पद ही नहीं, बल्कि सारा पावर भी आरसीपी सिंह (RCP Singh) को शिफ्ट कर दिया है. क्योंकि पार्टी में वो सारी बातें होने लगी हैं, जो नीतीश कुमार के अध्यक्ष रहते नहीं हुई थी. साल 2019 में नीतीश कुमार ने केन्द्र सरकार में शामिल होने से ये कहते हुए इनकार कर दिया था कि उन्हें सांकेतिक भागीदारी मंजूर नहीं है. लेकिन अब आरसीपी सिंह के अध्यक्ष रहते पार्टी ने एक मंत्री पद पर हामी भर दी.


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केन्द्र सरकार में शामिल होने के बाद अब बारी संगठन में बदलाव की है. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता के पद पर लंबे समय से काबिज संजय सिंह को (Sanjay Singh) अचानक पद से हटा दिया गया. संजय सिंह को प्रवक्ता पद से हटाना JDU में सामान्य बात नहीं है. संजय सिंह वर्तमान में एमएलसी हैं और वो नीतीश कुमार के सबसे खास सिपहसालार में से एक हैं. इसलिए प्रवक्ता पद से उनका हटना JDU में मामूली बात नहीं है.


नीतीश के चहेते 'सिपहसालार' पर गिरी गाज, कुशवाहा-ललन की मुलाकात पर सियासत तेज
नीतीश कुमार के बेहद चहेते संजय सिंह को मुख्य प्रवक्ता पद से हटाना किसी के गले नहीं उतर रहा है. पिछले कुछ वक्त से वैसे भी ये चर्चाएं गर्म हैं कि JDU में अब आरसीपी सिंह की ही चल रही है. पार्टी में पावर गेम शुरु हो गया है, जिसमें आरसीपी सिंह भारी पड़ रहे हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने को मिला, जब पार्टी ने केन्द्र में सिर्फ एक मंत्री पद को स्वीकार कर लिया. इसको लेकर खुद सीएम नीतीश कुमार ने मीडिया में कहा कि 'अब आरसीपी सिंह अध्यक्ष हैं. मेरे समय मुझे जो उचित लगा, वो मैंने किया. अब आरसीपी सिंह ही फैसला करेंगे और किसे मंत्री बनाना है वही तय करेंगे'.


नीतीश कुमार के इस बयान ने साफ कर दिया कि पार्टी पर आरसीपी का पूरी तरह प्रभाव बन चुका है. इसका दूसरा और बहुत बड़ा उदाहरण तब देखने को मिला, जब नीतीश कुमार के सबसे खास लोगों में शुमार संजय सिंह को प्रवक्ता पद से हटा दिया गया. संजय सिंह एक दशक से भी ज्यादा समय से प्रवक्ता पद की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. बड़ी बात ये भी है कि महज 15 दिन पहले ही JDU की नई प्रदेश कमिटी का गठन हुआ था. उस लिस्ट में भी प्रवक्ता पद की सूची में संजय सिंह का नाम सबसे ऊपर था.


सवाल ये कि आरसीपी सिंह के केन्द्रीय मंत्री पद संभालते ही ऐसा क्या हो गया कि संजय सिंह पर गाज गिर गई? ये गाज भी तब गिरी है, जब एक दिन पहले ही संजय सिंह ने मुंगेर से JDU के लोकसभा सांसद ललन सिंह (Lalan Singh) से मुलाकात की थी. दरअसल वो ललन सिंह ही थे, जो आरसीपी सिंह के साथ केन्द्र में मंत्री पद पाने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे थे. लेकिन बाजी आरसीपी सिंह के हाथ लगी थी. ऐसे में सवाल ये भी कि क्या ललन सिंह से मुलाकात की सजा संजय सिंह को दी गई?


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JDU की 'जंग' पर विपक्ष ने 'तीर' से बोला हमला, आरसीपी सिंह को BJP की 'कठपुतली' बताया 
JDU में पिछले कुछ दिनों में जो हुआ है, उस पर विपक्ष ने जोरदार हमला बोला है. विपक्ष ने इसे BJP का खेल बताया है. विपक्ष का कहना है कि 'नीतीश कुमार के हाथ से अब सब कुछ निकल चुका है. पार्टी में उनके खिलाफ दूसरा गुट तैयार हो रहा है. आरसीपी सिंह जब चाहें पार्टी को तोड़ सकते हैं. उनके कई विधायक पाला बदल सकते हैं. नीतीश कुमार ने साल 2019 में केन्द्र सरकार में शामिल होने से इनकार किया था. लेकिन उनके विचारों को दरकिनार कर JDU के वर्तमान अध्यक्ष ने उसी ऑफर को स्वीकार कर लिया. केन्द्र में सांकेतिक भागीदारी को JDU ने न सिर्फ कबूल कर लिया, बल्कि एकमात्र मंत्री पद जो मिला, वो भी पार्टी अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने खुद ले लिया. उन्होंने नीतीश कुमार का दशकों से साथ देने वाले ललन सिंह को किनारे कर दिया'.


विपक्ष ने नीतीश कुमार और JDU पर ये कहते हुए भी निशाना साधा कि 'नीतीश कुमार ने सरेंडर कर दिया है. वो अब अपनी पार्टी को बचाने की स्थिति में नहीं हैं. आरसीपी सिंह को अब बीजेपी गाइड कर रही है और वो BJP के ही इशारे पर काम कर रहे हैं. अगर नीतीश कुमार ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो JDU के विधायकों को BJP तोड़कर अपने पाले में मिला लेगी. BJP ने इससे पहले जो कुछ LJP के साथ किया था, वहीं अब JDU के साथ कर रही है'.


'तीर' की जंग पर राजनीतिक विश्लेषकों की भी नजर
JDU में हो रही हलचल पर एक्सपर्ट्स भी नजर बनाए हुए हैं. उनका भी मानना है कि आरसीपी सिंह के दौर में JDU बदली-बदली नजर आ रही है. विश्लेषकों का कहना है कि 'बदलाव चाहे जिस तरह के भी हो, लेकिन नीतीश कुमार आज भी पार्टी में सबसे मजबूत हैं. वो जब चाहें पार्टी पर अपनी पकड़ वापस ले सकते हैं. आरसीपी सिंह कभी भी ऐसे जमीनी नेता नहीं रहे, जो अपने दम पर एक राजनीतिक पार्टी को आगे लेकर जा सकें. अगर JDU को अलग पार्टी के तौर पर अपनी पहचान बनाए रखनी है, तो नीतीश कुमार का चेहरा ही एकमात्र विकल्प हो सकता है'.