ये है शमी के पौधे की विशेषता, जेठ की तपती गर्मी में भी रहता है हरा भरा
शमी के पौधे के बारे में सभी जानते होंगे. सनातन संस्कृति में सभी साधक शमी के पौधे की पूजा करते हैं और इसके जरिए अपने जीवन में शनि के दोषों को दूर करने के लिए न्याय के देवता शनि देव से गुहार लगाते हैं.
पटना: शमी के पौधे के बारे में सभी जानते होंगे. सनातन संस्कृति में सभी साधक शमी के पौधे की पूजा करते हैं और इसके जरिए अपने जीवन में शनि के दोषों को दूर करने के लिए न्याय के देवता शनि देव से गुहार लगाते हैं. फिर भी कम ही लोगों को पता होगा कि शमी के पौधों में कई औषधीय और ऐसे गुण मौजूद हैं जिस सुनकर आप चौंक जाएंगे. इस पौधे की पूजा से शनि ग्रह के दोषों से मुक्ति मिलने के साथ शनि देव की कृपा तो मिलती ही है. साथ ही शमी का पौधा भगवान शिव, सिद्धि दाता गणेश और प्रभु श्रीराम को भी अत्यंत प्रिय है और साथ ही मां शक्ति की कृपा भी इस पौधे की पूजा से बनी रहती है.
ये है शमी के पौधे की विशेषता
जेठ की तपती गर्मी में जब सभी पौधे या तो मुरझा जाते हैं या फिर सूख जाते हैं यह वृक्ष अपनी जीवटता का प्रदर्शन करता है. यह इस महीने में भी हरा रहता है. रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का यह पेड़ एक सहारा होता है. इस पेड़ को चारे के रूप में जानवर तब खाते हैं जिसे लूंग कहा जाता है.
इसके फूल को मींझर कहते हैं, जबकि इसका फल सांगरी कहा जाता है. इसके फल की सब्जी बनाई जाती है. यही फल सूखने के बाद खोखा या सूखा मेवा होता है.
किसान इसकी लकड़ी से हल बनाते हैं. क्योंकि यह काफी मजबूत होती है.
वराहमिहिर की मानें तो शमी के वृक्ष में जिस साल ज्यादा फल फूल लगते हैं उस साल ज्यादा सूखाड़ की संभावना होती है. ऐसे में इस पेड़ के संकेत को मानकर किसान ज्यादा मेहनत कर इस विपदा से अपने को बचा सकते हैं. इसलिए विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का नियम है.
कहा जाता है कि इस पेड़ की छांव तले अनाज की पैदावार अन्य जगहों से ज्यादा होती है.
यह भी कहा जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में अपने अस्त्र-शस्त्र इसी पेड़ में छुपाकर रखे थे.
शमी के पेड़ की लकड़ी यज्ञ के लिए पवित्र मानी गई है. शनिवार को होने वाले हवन में इस लकड़ी का विशेष महत्त्व है.
शमी को शनि ग्रह का पौधा माना जाता है.
कृष्ण जन्मअष्टमी के दिन भी इस पौधे की पूजा की जाती है.
हमारे धर्म शास्त्रों की मानें तो घर के ईशान कोण में आंवला, उत्तर में शमी, वायव्य में बेल तथा दक्षिण में गूलर वृक्ष का वृक्ष लगाना चाहिए. यह शुभ होता है.
महाकवि कालिदास ने इसी शमी के वृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान प्राप्त किया था.
भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शमी का पुष्प और इसी पत्तियां चढ़ाई जाती है.
शमी के औषधीय गुण भी बेहद चौंकानेवाले हैं. यह कफनाशक, मासिक धर्म की समस्याओं को दूर करने वाला और प्रसव पीड़ा का निवारण करने वाला है.
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