Maha Bharani Shraddha: आज महाभरणी श्राद्ध है, जिसका महत्व गया में किए गए श्राद्ध के समान है. पितृपक्ष के दौरान महाभरणी श्राद्ध का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार. जब किसी विशेष तिथि पर अपराह्न काल के दौरान भरणी नक्षत्र होता है, तो उस दिन महाभरणी श्राद्ध किया जाता है. इस श्राद्ध को करने से पितरों को शांति मिलती है.


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आचार्य मदन मोहन के अनुसार भरणी नक्षत्र का स्वामी यम है, इसलिए इस नक्षत्र में श्राद्ध करना विशेष पुण्यकारी माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष में भरणी नक्षत्र का होना बेहद शुभ होता है. भरणी नक्षत्र अक्सर चतुर्थी या पंचमी तिथि पर पड़ता है, लेकिन यह तृतीया या षष्ठी पर भी हो सकता है.


महाभरणी श्राद्ध का समय
इस बार महाभरणी श्राद्ध 21 सितंबर 2024 को किया जा सकता है. भरणी नक्षत्र 21 सितंबर को दोपहर 2:43 बजे से शुरू होगा और 22 सितंबर को दोपहर 12:36 बजे समाप्त होगा.


कुतुप काल: 21 सितंबर को 11:49 से 12:38 तक रहेगा, इस दौरान श्राद्ध कर्म करना शुभ माना जाता है.


श्राद्ध विधि
आचार्य के अनुसार ब्राह्मण द्वारा श्राद्ध कर्म करने के लिए किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से पिंडदान और तर्पण करवाना चाहिए. इससे पितरों को शांति मिलती है. साथ ही ब्राह्मणों को भोजन करवाने के साथ-साथ किसी गरीब या जरूरतमंद की सहायता दान और सेवा के रूप में भी करनी चाहिए. ऐसा करने से बहुत पुण्य मिलता है. श्राद्ध में गाय, कुत्ते और कौवे आदि के लिए भोजन का एक हिस्सा जरूर अलग निकालें। इन्हें भोजन कराते समय पितरों को स्मरण करें और उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करें. बता दें कि यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे श्राद्ध करना शुभ होता है. अगर यह संभव न हो तो घर पर भी श्राद्ध किया जा सकता है. साथ ही श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद उन्हें दान-दक्षिणा दें और संतुष्ट करें.


श्राद्ध सामग्री
आचार्य मदन मोहन के अनुसार श्राद्ध पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री का प्रयोग किया जाता है. रोली, सिंदूर, सुपारी, रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी पत्ता, पान का पत्ता, जौ, हवन सामग्री, गुड़, मिट्टी का दीया, रुई बत्ती, अगरबत्ती, दही, गंगाजल, सफेद फूल, उड़द, खीर, मूंग, गन्ना आदि.


श्राद्ध के लाभ
महाभरणी श्राद्ध का फल गया में किए गए श्राद्ध के समान माना जाता है. इससे पितरों को शांति मिलती है और वे आशीर्वाद देते हैं. यह श्राद्ध विशेष रूप से पितरों के उद्धार और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए किया जाता है.


विशेष ध्यान
श्राद्ध करते समय पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ विधि-विधान का पालन करना चाहिए. ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है.


Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियों की सत्यता का दावा नहीं किया जा सकता. अधिक जानकारी के लिए संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें.


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