Bihar Shikshak Bharti: शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के बीच नियम बदलकर बिहारियों के जज्बात से क्यों खेल रही है नीतीश सरकार?
Bihar Teacher Recruitment: बिहार में एक बार जब शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है तो नीतीश सरकार की ओर से बीच बीच में नियमों में बदलाव करना कहां तक जायज है.
Bihar Teacher's Recruitment: बिहार सरकार ने शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया जिस दिन से शुरू की, उसी दिन से इसका विरोध शुरू हो गया. शिक्षक अभ्यर्थियों का कहना था कि जब वे B.Ed, STET पास कर गए हैं तो उन्हें BPSC का एग्जाम क्यों क्वालीफाई करना होगा? जब वे BPSC की परीक्षा देकर शिक्षक बनेंगे, फिर भी उन्हें राज्यकर्मी क्यों नहीं माना जाएगा? वे प्रिंसिपल क्यों नहीं बन पाएंगे? कई सारी आपत्तियां थीं. फिर भी सरकार ने उनकी एक न सुनी और वैकेंसी निकालते हुए भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत भी कर दी. शिक्षक अभ्यर्थियों का गुस्सा तब सातवें आसमान पर पहुंच गया, जब जून के अंतिम सप्ताह में नीतीश कुमार की सरकार ने शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में डोमिसाइल की अनिवार्य शर्त को हटा दिया. शुरुआत में तो सरकार को लगा कि पुरानी आपत्तियों की तरह इस आपत्ति को भी दरकिनार कर देंगे पर यह सरकार की चूक थी और वह अंदाजा नहीं लगा पाई कि इस बात का कितना गहरा असर होने वाला है. रही सही कसर शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के बेतुके बयानों ने पूरी कर दी.
बिहार में नहीं मिल पाते सक्षम छात्र: चंद्रशेखर
शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने कह दिया कि डोमिसाइल की अनिवार्य शर्त हटाने से देशभर के अभ्यर्थी इस परीक्षा में शामिल हो सकेंगे. बिहार में यह समस्या खास तौर से देखी जाती है कि साइंस सब्जेक्ट जैसे फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्य के अलावा अंग्रेजी के सक्षम छात्र नहीं मिल पाते और सीटें खाली रह जाती हैं. उन्होंने इसके लिए बिहार के प्रिंसिपल भर्ती का उदाहरण भी दिया, जिसमें 6000 पदों के लिए केवल 369 लोग ही सेलेक्ट हो पाए. विरोधी दलों को जैसे शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के इसी बयान का इंतजार था.
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शिक्षा मंत्री के बयान का मतलब यह निकाला गया कि बिहार में मेरिट का अभाव है और नेताओं ने इसे खूब हवा दी. सरकार सफाई देती रही पर कोई असर नहीं हुआ. परिणामस्वरूप शिक्षक आंदोलित हो गए और पटना पहुंचने लगे. अंत में सरकार की ओर से खुद मुख्यमंत्री ने शिक्षकों के प्रतिनिधियों से बातचीत की. कुछ ठोस आश्वासन मिलने पर ही शिक्षक शांत हुए. भाजपा ने तो सरकार का विरोध किया ही, भाकपा माले ने भी इस मसले पर शिक्षकों का साथ दिया और भर्ती होने वाले शिक्षकों को राज्यकर्मी घोषित करने की मांग कर डाली.
जटिल प्रक्रिया और कम वेतन से खाली रह जाती हैं सीटें
कई शिक्षक अभ्यर्थियों ने कहा, माननीय शिक्षा मंत्री की फैक्चुअल अंडरस्टैंडिंग नहीं है. वो कह रहे हैं कि सीटें खाली रह जाती हैं. जब बिहार सरकार ने 2019-20 में एसटीईटी का एग्जाम लिया था तो वह केवल बिहार के अभ्यर्थियों के लिए था और अब वे दूसरे राज्यों के लोगों को नौकरी में मौका देने की बात कर रहे हैं. सवाल उठता है कि सीटें क्यों खाली रह जाती हैं. वो इसलिए कि सरकार इतने कम वेतन और जटिल प्रक्रिया से भर्ती करती है कि योग्य अभ्यर्थी इससे अलग हो जाते हैं. साइंस-मैथ्य के पोस्ट ग्रेजुएट कोचिंग पढ़ाकर 50-60 रुपये प्रति माह कमा लेते हैं और आप उन्हें 20-22 हजार में रखना चाहते हैं. सरकार को पे स्केल पर बात करनी चाहिए. समान काम के लिए समान वेतन मिलना चाहिए. आप बिहार के युवाओं का हक मारने के साथ ही उनकी प्रतिभा पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
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कुछ अभ्यर्थियों का कहना था, सरकारें बदलती रही हैं पर मुख्यमंत्री वही के वही हैं. हम कल भी सड़कों पर थे और आज भी सड़कों पर हैं. हम घर से ताना सुनने और सरकार से लाठी खाने को मजबूर हैं. हर बार खेल के नियम बदल जा रहे हैं. बिहार में रोजगार के मौके पहले से ही कम हैं. न आईटी सेक्टर है और न ही कोई इंडस्ट्री. अब जो बहाली शुरू हुई है, उसमें भी बंदरबांट शुरू हो गई है. इससे बिहार की प्रतिभ्ज्ञा के साथ अन्याय हो रहा है तो हम तो विरोध करेंगे ही.
बता दें कि पिछले महीने बीपीएससी के जरिए राज्य सरकार ने एक लाख 70 हजार शिक्षकों की भर्ती का नोटिफिकेशन जारी किया था. कई संगठनों ने इस बात की सराहना की थी लेकिन बार-बार नियम बदलने से यह भर्ती अब विवादों के दायरे में आ गई है. भर्ती के लिए 15 जून से आवेदन प्रक्रिया शुरू की गई थी और आज 12 जुलाई तक आवेदन करना था.
तेजस्वी यादव से पूछ जा रहे है सवाल
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद नेता तेजस्वी यादव ने बिहार के युवाओं को 10 लाख नौकरी देने का वादा किया था. तेजस्वी यादव ने कहा था, कैबिनेट की पहली बैठक में अपने पेन से वे युवाओं को नौकरी देंगे. उस समय उन्होंने डोमिसाइल नीति का भी समर्थन किया था. तेजस्वी यादव के सरकार में आए हुए भी साल भर हो गए पर एक भर्ती निकली और वो भी विवादों के केंद्र में आ गई है. अब तेजस्वी यादव पर भी सवाल उठ रहे हैं. तब नीतीश कुमार एनडीए के साथ थे. कुछ अभ्यर्थियों का कहना है कि 2020 के फरवरी माह में सत्र के दौरान डोमिसाइल नीति पर भी बहस हुई थी. उस समय तेजस्वी यादव ने तमाम लोगों को सपना दिखाया कि सत्ता में आने पर वे डोमिसाइल नीति लागू करेंगे. इसी कारण उन्हें युवाओं का अपार समर्थन मिला था. इसके अलावा 10 लाख नौकरी देने के वादे के साथ ही उनकी लोकप्रियता बढ़ी लेकिन क्या पता था कि वे पूरे भारत के 10 लाख युवाओं को नौकरी देने की बात कह रहे थे.
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सम्राट चौधरी लगातार कर रहे हैं बड़ा हमला
बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी का कहना है कि पूरी सरकार मानसिक रूप से बीमार हो गई है. महागठबंधन दलों के दबाव में सरकार युवाओं से खिलवाड़ कर रही है. विगत 4 सालों से एसटीईटी और सीटेट पास अभ्यर्थी सड़कों पर घूम रहे हैं पर शिक्षा मंत्री को बिहार के युवाओं में मेरिट नजर नहीं आती. यह बिहारी अस्मिता पर हमला है.
भाकपा माले का क्या है कहना
भाकपा माले विधायकों की ओर से कहा गया है कि भर्ती प्रक्रिया के बीच अचानक डोमिसाइल नीति चेंज कर देना अनुचित है. यह बिहार के युवाओं के साथ धोखा है. सरकार को नई नियमावली पर विचार करना चाहिए और शिक्षक अभ्यर्थियों के प्रतिनिधियों से बातचीत की जानी चाहिए.