PICS: आस्था के पर्व में डूबा बिहार, अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य
चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व बहुत कठिन होता है. खरना के दिन एक ही बार अन्न और जल ग्रहण करने का विधान है. उसके बाद वर्ती को निर्जला रहना होता है. नीचे जमीन पर सोना होता है.
बेहद पुरानी है छठ की परंपरा
कार्तिक शुक्ल षष्टी को छठ व्रत (Chhath Puja) की परंपरा बहुत पुरानी है. इसका प्रमाण प्राचीनतम धर्म ग्रंथ स्कंद पुराण में विस्तार से मिलता है. कुलपति के नेतृत्व में संस्कृत विश्वविद्यालय कई दशक से विश्वविद्यालय पंचांग का प्रकाशन करता है. इसी पंचांग के अनुसार मिथिलांचल की इलाकों में हिंदू धर्म के व्रत-त्योहार और शुभ कार्य होते हैं.
भगवान सूर्य की होती है अराधना
स्कंद पुराण के अनुसार छठ व्रत की महिमा और पूजा करने की विधि बताई. उन्होंने बताया कि छठ व्रत में भगवान सूर्य की आराधना की जाती है. इससे कोई भी असाध्य रोग ठीक हो जाता है. इसके अलावा दीर्घायु होने का आशीर्वाद भी मिलता है.
चार दिनों का पर्व
चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व बहुत कठिन होता है. खरना के दिन एक ही बार अन्न और जल ग्रहण करने का विधान है. उसके बाद वर्ती को निर्जला रहना होता है. नीचे जमीन पर सोना होता है. खरना के अगले दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.
क्यों कहा जाता है छठ
आखिर सूर्य भगवान की आराधना के पर्व को छठ क्यों कहा जाता है. दरअसल, प्राचीन काल में यह पर्व स्कंद षष्टी कहा जाता था. छठी मइया के संबंध कथा प्रचलित है कि गंगा ने एक छह स्कन्द वाले बालक को जन्म देकर उसे सरकंडा के वन में छोड़ दिया. उस वन में छह कृतिकाएं रहती थीं, जिन्होंने इस बालक का पालन-पोषण किया. वे छह माताएं कहलायीं. इस वजह से इसे छठी मइया भी कहा जाता है. वे कृतिकाएं थीं इसलिए इस मास का नाम कार्तिक पड़ा. वह शुक्ल षष्टी तिथि थी इस लिए इसे कार्तिक षष्टी कहा जाता है. एक दूसरी मान्यता के अनुसार, सूर्य की शक्ति षष्टी देवी हैं, जिन्हें कात्यायनी भी कहा जाता है. इसलिए इसे छठी मइया भी कहा जाता है.
कोरोना के बीच छठ का त्योहार
पूरी दुनिया इस समय कोरोना की चपेट में है. वहीं, कोरोना की वजह से लोगों के उत्साह में कमी नहीं आई है. हालांकि, जिला प्रशासन बार-बार लोगों से अपील कर रही है कि घर में रहकर ही छठ मनाएं.