Opposition Unity Crisis: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले नीतीश की अगुवाई में विपक्षी एकता का मंच पटना में सजा तो विपक्षियों का जोश हाई था. पर पता नहीं किसकी नजर इस एकता बैठक के बाद विपक्षी दलों को लग गई. कांग्रेस के खिलाफ सबसे पहले आम आदमी पार्टी खड़ी हो गई दोनों के बीच जुबानी जंग तेज हो गई. उधर केंद्र सरकार की तरफ से अभी UCC(समान नागरिक संहिता) का शगूफा ही छोड़ा गया था कि आम आदमी पार्टी केंद्र के फैसले में उनके साथ खड़ी हो गई तो वहीं शिवसेना(उद्धव) गुट भी इसके समर्थन में आ गया. अब सोचिए यह सब चल ही रहा था कि महाराष्ट्र में जो सियासी तांडव रविवार को मचा उसने तो सारा विपक्षी एकता का खेल ही चौपट कर दिया. 


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जिस शरद पवार के लंबे सियासी अनुभव का फायदा लेकर कांग्रेस और नीतीश कुमार सहित तमाम विपक्षी दल विपक्षी एकता का मजमून तैयार कराने के लिए आगे बढ़े थे वह शरद पवार अब अपनी पार्टी को बचाने की जद्दोजहद में लग गए हैं. दरअसल शरद पवार के भतीजे अजित पवार लंबे समय से पार्टी में नाराज चल रहे थे और लगातार बयानबाजी भी अन्य दलों के नेताओं की तरफ से की जा रही थी कि वह जल्द भाजपा में शामिल हो सकते हैं. 


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रविवार यानी 2 जुलाई के अजित पवार एनसीपी के 40 विधायकों के साथ महाराष्ट्र में राजभवन पहुंच गए और फिर क्या था पीछे से राजभवन की सीढ़ियां चढ़ी महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने. उनके साथ सरकार के सभी मंत्री थे और फिर आनन-फानन में अजीत पवार को महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम पद की शपथ दिलाई गई. मतलब घंटा भर भी नहीं गुजरा होगा कि महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता डिप्टी सीएम बन गए. 


अजित पवार के साथ 9 और NCP विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई. वहीं राजभवन में शरद पवार के सबसे करीबी प्रफुल्ल पटेल भी अजित पवार के साथ नजर आए. ऐसे में भाजपा-शिवसेना शिंदे गुट को एनसीपी के समर्थन का फैसला भले महाराष्ट्र में लिया गया लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यह बड़ा झटका विपक्षी एकता को दिया गया है. 


हालांकि राजनीति के जानकार पहले भी कह चुके हैं कि नीतीश कुमार की अगुवाई से शरद पवार खासे प्रसन्न नहीं थे वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी को लगातार विपक्षी एकता के लिए थोपना भी उनको शायद भा नहीं रहा था. वैसे भी महाराष्ट्र की राजनीति को नजदीक से देखने वाले जानते हैं कि शरद पवार की मंजूरी के बिना इतना बड़ा फैसला तो कई नहीं ले सकता है. ऐसे में जिसे विपक्षी एकता का ड्राफ्ट तैयार करने का जिम्मे मिला उनकी पार्टी की टूट ने नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की योजना की ही कमर तोड़कर रख दी है. नीतीश कुमार अब आगे इस मामले में क्या कर पाएंगे यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन जिस तरह से बिहार में महागठबंधन के दल नीतीश का साथ छोड़ रहे हैं. नीतीश की खुद की पार्टी के नेता जिस तरह का आपसी सिर फुटव्वल कर रहे हैं और इस सबके ऊपर जिस तरह का वज्रपात महाराष्ट्र में NCP ने विपक्षी एकता कायम होने से पहले किया है इससे तो साफ पता चल गया है कि अब तो भाजपा का एक-एक जुमला विपक्षी एकता को लेकर कहा गया सच होता दिखने लगा है.