एक दंगे ने बदलकर रख दी सियासत, 35 साल बाद भी महसूस की जा रही तपिश
Bahraich Riots: आम तौर पर दंगे अनायास नहीं होते. इसकी एक लंबी पृष्ठभूमि बन रही होती है. फिर एक छोटी सी घटना अचानक बड़ी बनकर तात्कालिक कारण के रूप में सामने आती है और बाद में एक लंबा राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिक परिणाम छोड़ जाती है.
Bahraich Riots: उत्तर प्रदेश का बहराइच आज दंगों की आंच में जल रहा है. एक की जान भी जा चुकी है और उपद्रव तेजी से बढ़ता जा रहा है. हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड आर्डर अमिताभ यश को भी मैदान में उतरना पड़ गया है. बहराइच के बहाने बिहार के भागलपुर दंगों की याद ताजा हो गई है. भागलपुर दंगे के 25 साल बाद भी इसकी तपिश महसूस की जा सकती है. 1989 के अक्टूबर का अंतिम सप्ताह... मौसम लगभग यही था. तब भागलपुर और आसपास के इलाकों में दंगा भड़क गया था. इस दंगे को आजादी के बाद बिहार के इतिहास का सबसे बड़ा दंगा कहा गया था.
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इस दंगे ने बिहार की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी और उसके बाद जो सियासी और सामाजिक समीकरणों में जो बदलाव हुए, उन्हें आज भी महसूस किया जा सकता है. बिहार के अलावा भारत की राजनीति भी भागलपुर दंगे के चलते काफी हद तक प्रभावित हुई थी. जानकार कहते हैं कि अगर भागलपुर दंगा नहीं होता तो लालू प्रसाद यादव मुस्लिम और यादवों का राजनीतिक गठजोड़ नहीं बना पाते और वीपी सिंह मंडल कमीशन की सिफारिशें नहीं लागू कर पाते.
कुछ जानकारों का कहना है कि भागलपुर दंगा एक प्रयोग था और उसके परिणाम इतने साल बाद अब निकलकर सामने आ रहे हैं. ऐसे जानकार तर्क देते हैं कि केंद्रीय स्तर पर मुसलमानों के वोट के बिना भाजपा की जीत ने यह साबित कर दिया कि अल्पसंख्यकों के बिना भी सत्ता हासिल की जा सकती है. भागलपुर में जब दंगा भड़का था, तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और उसे इसकी बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी. कांग्रेस आज भी इसका खामियाजा भुगत रही है.
कुछ विश्लेषक भागलपुर दंगों के बाद बड़ी घटनाओं में राम मंदिर आंदोलन और बाबरी विध्वंस का भी जिक्र करते हैं. कुछ अन्य जानकार मानते हैं कि कांग्रेस ने दंगों को लेकर जिस तरह का रुख अपनाया, उससे मुसलमान हमेशा के लिए कांग्रेस से जुदा हो गए. ऐसे जानकारों का कहना है कि उस समय जिन पार्टियों ने धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा उठाया, उनको मुसलमानों का व्यापक जनसमर्थन हासिल हुआ. इसको भुनाने में बिहार में लालू प्रसाद यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव सबसे आगे रहे.
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हालांकि, यह बिहार के लिए बड़ी उपलब्धि है कि भागलपुर जैसा दंगा उसके बाद कभी नहीं हुआ. पिछले साल दरभंगा, नवादा जैसी जगहों पर शोभायात्रा को लेकर कुछ फसाद हुए थे, लेकिन वे इतने व्यापक नहीं थे, जितना भागलपुर का दंगा था. यह बिहार के लिए बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है.