Bihar Caste Census: बिहार में हुए जातीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में भले उत्साह देखने को मिल रहा हो. लेकिन, पार्टी की प्रदेश इकाई इस रिपोर्ट को पचा नहीं पा रही है और प्रदेश स्तर पर पार्टी के नेताओं की राय इस पर बंटी हुई है. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा की चिंता है कि सवर्णों की आबादी घटी हैं और उन्होंने इसको लेकर सवाल भी उठाए तो वहीं दूसरी तरफ पार्टी के एक अन्य नेता किशोर कुमार झा की मानें तो इस राज्य से पलायन के लिए अप्रत्यक्ष रूप से लालू राज ही जिम्मेदार रहा है. 


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वहीं पार्टी के कुछ नेता दबे स्वर में ही सही कहने लगे हैं कि एक बार फिर प्रदेश बैकवर्ड क्लास की राजनीति की ओर बढ़ सकता है. ऐसे में राज्य के विकास की राजनीति शिथिल होगी और उसका नुकसान पूरे प्रदेश को होगा. अनिल शर्मा की तरफ से लगातार कई ट्वीट कर इस पूरे रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े किए गए और सवाल उठाया गया कि आखिर प्रदेश में सवर्ण आबादी कम कैसे हो गई. 




शर्मा ने एक स्क्रीन शॉट शेयर करते हुए लिखा कि सरकार को डेटा जुटाने में दखल नहीं देना चाहिए. सवर्ण जो 2022 तक प्रदेश में 22 प्रतिशत थे वह अब 15 प्रतिशत पर कैसे आ गए. उन्होंने आगे लिखा कि बिहार के जातिय जनगणना के बाद जिसकी जितनी संख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी के नारे एवं परोपकार अपने घर से ही शुरू होता है"की कहावत को चरितार्थ करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने मंत्रिमंडल में आज ही एक-एक मुस्लिम,अतिपिछड़ा एवं अनुसूचित जाति को उपमुख्यमंत्री बनाना चाहिए. 


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किशोर कुमार झा ने भी यही सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार को इसका अवलोकन करना चाहिए की आखिर सवर्णों की आबादी प्रदेश में घटी कैसे? उन्होंने कहा कि बिहार से पलायन कर दूसरे जगह रह रहे सवर्ण जिनकी जड़ें आज भी प्रदेश से जुड़ी हैं उन्हें तो इसमें स्थान ही नहीं दिया गया. वहीं कांग्रेस के नेता दबी जुबान यह भी कह रहे हैं कि सत्ताधारी पार्टी की तरफ से नरेंद्र मोदी सरकार से मुकाबले के लिए यह एजेंडा है जो तैयार किया गया है. उनका मानना है कि परिणाम इसके विपरीत भी हो सकते हैं. जबकि कांग्रेस के अन्य कई नेता सरकार के इस सर्वे के आंकड़े के समर्थन में भी हैं.