Bihar Caste Census: जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी; 2.87% कुर्मी, ऐसे में CM कैसे रह पाएंगे नीतीश कुमार?
Bihar Caste Census Report: जातीगत जनगणना की रिपोर्ट में कई बातों का खुलासा हुआ. यह रिपोर्ट अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ा सकती है. दरअसल, लालू यादव का कहना है कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी.
Bihar Caste Census Report: बिहार सरकार ने तमाम मुश्किलों के बाद जातीय जनगणना की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दी है. सरकार इसे बड़ी कामयाबी मान रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद अध्यक्ष लालू यादव ने रिपोर्ट जारी होते ही खुशी जताई और इस काम में लगे सभी लोगों को बधाई दी. जातीगत जनगणना की रिपोर्ट में कई बातों का खुलासा हुआ. यह रिपोर्ट अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ा सकती है. दरअसल, लालू यादव का कहना है कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. रिपोर्ट के अनुसार, कुर्मी की आबादी सिर्फ 2.87 फीसदी है. इस लिहाज से नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री कैसे रह सकते हैं.
इतना ही नहीं नीतीश कुमार को अपनी कैबिनेट की तस्वीर बदलनी पड़ेगी. नीतीश की कैबिनेट में इस वक्त अति पिछड़ा वर्ग से मात्र 5 नेता मंत्री हैं, जबकि पिछड़ा वर्ग से 12 नेताओं को कैबिनेट में शामिल किया गया है. दलित और मुस्लिम समुदाय से 5-5. वहीं सवर्ण समुदाय से 4 मंत्री हैं. जातिगत सर्वे रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि अति पिछड़ों की राजनीति अब ओबीसी पर भारी पड़ने वाली है. रिपोर्ट के हिसाब से अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36 फीसदी है. जबकि पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या 27 प्रतिशत है.
ये भी पढ़ें- जातीय जनगणना से लालू यादव के MY वोटबैंक को मिली ताकत! देखें मुस्लिम-यादवों की आबादी
बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार की राजनीति का आधार शुरू से ओबीसी कैटेगरी के सबसे संपन्न और दबंग माने जाने वाले यादव और कुर्मी रहे हैं. यादवों की जनसंख्या 14 फीसदी है पर ओबीसी आरक्षण की सारी मलाई ये लोग ही काट रहे थे. वहीं कुर्मियों की आबादी सिर्फ 2.87 प्रतिशत है. बिहार में अति पिछड़ा वर्ग की आर्थिक-सामाजिक दशा पिछड़ी जातियों से भी बुरी है. न्याय यही कहता है कि सरकारी योजनाओं पर अब सबसे अधिक लाभ अति पिछड़ा वर्ग को मिलना चाहिए.
ये भी पढ़ें- जातीय जनगणना कराकर फंस गए CM नीतीश कुमार? मांझी की पार्टी ने कर दी बड़ी डिमांड
पिछड़ा वर्ग में भी अगर यादव-कोइरी-कुर्मी को छोड़ दिया जाए तो बाकी जातियों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं है. राजद और जदयू दोनों ने इस वोटबैंक की दम पर लंबे समय तक राजनीति की लेकिन उन्हें समाजिक स्तर पर आगे बढ़ाने का कोई काम नहीं किया. लालू यादव की सरकार में यादवों को बढ़ावा मिला तो नीतीश कुमार के शासन में कुर्मी आगे बढ़े. बाकी जातियों को तो सिर्फ वादों की चटनी चटाई गई है. अब अगर उन्हें हिस्सेदारी देने की कोशिश की गई तो आरक्षण की मलाई खा रही दबंग जातियों को धक्का लगेगा. मतलब नीतीश-लालू का ये दांव उन्हें ही हिट विकेट कर सकता है.