Bihar Politics: 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जनता के पास एक नई पार्टी को वोट करने का मौका मिलने वाला है. यह नई पार्टी होगी, राजनीतिक रणनीतिकार और जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर की. पीके ने आगामी 02 अक्टूबर को अपने आंदोलन को पार्टी की शक्ल देने का ऐलान कर रखा है. वह इसके बड़े जोर-शोर से लगे हुए हैं. पार्टी की स्थापना करने से पहले उन्होंने पूरे बिहार का भ्रमण किया है और जनता को अपने साथ खड़ा करने की पुरजोर कोशिश की है. हालांकि, उनकी मेहनत कितना रंग लाएगी, ये भविष्य में पता चलेगा. पीके अकेले नहीं जो नई पार्टी बनाकर चुनावी समर में कूदने वाले हैं. प्रदेश में पहले भी कई नई पार्टियों ने जन्म लिया. कुछ ने प्रदेश की सियासत में अपनी छाप छोड़ी तो कुछ जिस तरह से आईं, उसी तरह से समाप्त भी हो गईं. आज हम आपको प्रदेश की कुछ पार्टियों के जन्म और उनके सियासी सफर को बताने वाले हैं. देश की राजनीति में 1996 से लेकर 1998 तक का दौर सबसे अस्थिर माना जाता है. इस दौर में देश में कई क्षेत्रीय पार्टियों की स्थापना हुई. इस दौरान बिहार में भी एक पार्टी का उदय हुआ, जिसका नाम था जनता दल. इस पार्टी में जेपी आंदोलन से जुड़े कई छात्र नेता शामिल हुए, जिनमें लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और राम विलास पासवान का नाम सबसे ऊपर रखा जाता है. यहीं से राष्ट्रीय राजनीति में समाजवाद की नींव पड़ी. इस तिकड़ी ने राष्ट्रीय फलक पर बड़ी तेजी से अपनी छाप छोड़ी. 1970 के दशक से शुरू हुई ये दोस्ती 1990 के दशक में बिखर गई. 


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