पटना: दुनिया की सबसे मजबूत पार्टी मानी जानेवाली भाजपा आज अपना 44 वां स्थापना दिवस मना रही थी तो यह भी जानना जरूरी था कि आखिर  BJP को बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश करने में कितनी मशक्कत करनी पड़ी. बिहार में वह समय याद कीजिए जब कांग्रेस का बोलबाला था. जेपी जो बिहार से थे उनके आंदोलन के बाद कांग्रेस की सरकार की जड़ें केंद्र में हिल गई लेकिन बिहार में कांग्रेस की जमीन फिर भी पक्की थी. 1989 के बिहार दंगों के बाद जेपी और लोहिया के ही एक अनुयायी लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक उदय बिहार की जमीन पर होता है और यहां से बिहार की राजनीतिक फिजा बदल जाती है. MY समीकरण के जरिए लालू बिहार की राजनीति में अपनी जमीन मजबूत करते हैं लेकिन तब भी बिहार में भाजपा को वह जमीन नहीं मिल पाई थी जिसकी तलाश उसे थी.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


आज बिहार में भाजपा सरकार का हिस्सा भले नहीं हो लेकिन विधायकों के नंबर के लिहाज से वह मजबूत विपक्ष जरूर है. बिहार में भाजपा ने गठबंधन में रहकर इस धर्म का पूरा निर्वाह किया और नीतीश की अगुवाई में लंबे समय तक सत्ता में रही. कभी बिहार को भाजपा से कोई मुख्यमंत्री तो नहीं मिला लेकिन उसकी राजनीतिक जमीन प्रदेश में मजबूत होती चली गई. 2019 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी ने गठबंधन के साथ 40 में से 39 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की और बता दिया की पार्टी यहां कितना दम रखती है. आज भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है. ऐसे में बिहार में भाजपा के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसे जनलोक की पहचान मिली हो, फिर भी पार्टी जिस तरह से यहां अपनी सियासी जमीन मजबूत कर रही है उसकी पटकथा कब लिखी गई यह जान लें. 


44 साल पहले यही भाजपा एक ऐसे चेहरे के साथ देशभर में अपने लिए जमीन तैयार कर रही थी जब उसके पास कोई चेहरा नहीं था न इतनी बड़ी तादाद में कार्यकर्ता थे ना ही पार्टी का झंडा उठाने के लिए लोग. तब भाजपा के नेता रिक्शे और साइकिल से चला करते थे. नेताओं को जनसंपर्क के लिए पैदल गली-गली घूमना पड़ता था. भाजपा के पास बैठकों के लिए दफ्तर तक नहीं थे चाय की दुकान से ही लेकर खेत और मैदान तक पार्टी की बैठकें होती थी. 


ये भी पढ़ें- इथेनॉल प्लांट के उद्घाटन के बाद अपने पूर्व उद्योग मंत्री पर क्यों कसा नीतीश कुमार ने तंज


21 अक्टूबर 1951 में जनसंघ की स्थापना के साथ पार्टी को थोड़ा प्राण तो मिला था. लेकिन जब 6 अप्रैल 1980 को भाजपा की स्थापना हुई तो वह इसलिए एक सफल प्रयोग रहा क्योंकि 1974 के आंदोलन में इस पार्टी के कई नेताओं ने अपना सबकुछ आंदोलन के नाम सौंप दिया था. इंदिरा की इमरजेंसी का फायदा तब भाजपा के कार्यकर्ताओं ने उठाया. 


उस समय भाजपा के तमाम बड़े नेता चाहे अटल बिहारी वाजपेयी हों या कोई और जमीनी स्तर पर काम करते थे.  1990 के दशक तक यही हाल था. 1980 में जब जनसंघ से भाजपा बनी तो तब भी संघ का बड़ा दबदबा पार्टी में था हालांकि वह आज भी है लेकिन बिहार में तब भाजपा के लिए कैलाशपति मिश्रा वह नेता बने जिन्होंने भाजपा का पौधारोपण यहां किया. वह भाजपा के तब बड़े नेताओं में गिने जाते थे. उस समय वह रिक्शे और साइकिल से बिहार में अलग-अलग जाते और पार्टी के कार्यकर्ताओं के घर पर बैठकें होती थी. कैलाशपति मिश्रा के साथ मिलकर बिहार में भाजपा को वृक्ष का रूप देने का काम जग बंधु अधिकारी और जगदंबा यादव जैसे तमाम बड़े नेताओं ने किया. जब बिहार में MY समीकरण के जरिए लालू यादव अपनी सियासी जमीन मजबूत कर चुके थे तो यही समीकरण भाजपा के लिए भी यहां फायदे का सौदा रहा. दरअसल इस समीकरण से इतर जितनी भी जातियां रह गई थी वह एक विकल्प की तलाश में थी और उनके लिए भाजपा एक विकल्प के तौर पर उभरी. 


आज बिहार में भाजपा ने लंबे समय तक संघर्ष कर अपने लिए एक मजबूत जमीन तो तैयार कर ली लेकिन ऐसे प्रभाव रखने वाले नेता नहीं पैदा कर पाई. भाजपा आज भी अपने कार्यकर्ताओं की दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है क्योंकि इसके बारे में दावा किया जाता रहा है कि यह काडर बेस पार्टी रही है.