बिहार में भाजपा के हिंदूत्व के खिलाफ ये `सियासी हथियार` लेकर मैदान में डटेगी महागठबंधन, प्लान तैयार
पूरे देश में भाजपा ने अपनी राष्ट्रवाद और हिंदूत्व की राजनीति के जरिए विपक्षियों की नाक में दम कर रखा है. भाजपा की राजनीति के यह दोनों पहलू 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में लोगों को पसंद आए और यही वजह है कि भाजपा को दोनों बार बड़ी जीत हासिल हुई.
पटना : पूरे देश में भाजपा ने अपनी राष्ट्रवाद और हिंदूत्व की राजनीति के जरिए विपक्षियों की नाक में दम कर रखा है. भाजपा की राजनीति के यह दोनों पहलू 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में लोगों को पसंद आए और यही वजह है कि भाजपा को दोनों बार बड़ी जीत हासिल हुई. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा एक बार फिर से हिंदूत्व और राष्ट्रवाद की अपनी नीति को धार देने में लगी है और उसमें वह कामयाब भी नजर आ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि जहां एक तरफ विपक्ष अभी यह निर्णय तक नहीं कर पाया है कि गठबंधन के कौन से दल एक साथ चुनाव मैदान में उतरेंगे और विपक्ष का चेहरा कौन होगा. वहीं भाजपा एकदम तेजी से लोगों के बीच पहुंचने की कोशिश कर रही है.
वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद विपक्षी नेता इकट्ठा तो हो रहे हैं लेकिन कुछ स्पष्ट सा होता नजर नहीं आ रहा है. सबके एक साथ आने की सबसे बड़ी वजह एजेंसियों के द्वारा की जाने वाली कार्रवाई है. आपको बता दें कि लालू परिवार भी एजेंसियों के जांच के घेरे में है और ऐसे में राहुल के खिलाफ कार्रवाई के बाद से तेजस्वी को लग गया है कि यही सही मौका है जब विपक्षी एकता के लिए सभी दल साथ आ सकते हैं. तेजस्वी ने ऐसे में स्पष्ट कर दिया कि वह भाजपा के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हैं.
ऐसे में एक तरफ भाजपा के लिए बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत आदर्श जीत होगी क्योंकि यहां का जातिगत समीकरण ना तो भाजपा को सेट करता है.ना हीं यहां नीतीश के बिना भाजपा की कोई बड़ी ताकत कामयाब होती है. नीतीश साथ हों तो भाजपा यहां खूब ताकतवर नजर आती है. ऊपर से यहां विपक्ष की तरफ से भी कोशिश जारी है कि अगर बिहार में जाति संयोजन के आधार पर भाजपा को मात दी गई तो पूरे देश में भाजपा को इसका नुकसान होगा.
बिहार के जातिगत समीकरण को देखें तो वहां 18 फीसदी मतदाता मुसलमान हैं. यादवों के पास 16 प्रतिशत मत है इसके बाद नंबर आता है कुशवाहा का जो 12 प्रतिशत हैं फिर भूमिहार, उसके बाद राजपूत और कायस्थ इनके वोट बैंक का प्रतिशत 15 के करीब है. ऐसे में राजद कांग्रेस और जदयू के हिस्से में 34 प्रतिशत मत का समर्थन तो केवल M+Y के जरिए ही नजर आता है. इसके बाद जदयू के साथ कुशवाहा और भूमिहार वोट बैंक के साथ राजपूतों का भी एक बड़ा वर्ग है. ऐसे में राज्य की जो भी पार्टियां भाजपा के खिलाफ खड़ी हैं वह समझ रही हैं कि भाजपा के हिंदूत्व और राष्ट्रवाद के खिलाफ एक ही हथियार कामयाब है और वह है जाति के आधार पर संचित वोट बैंक.