Bihar News: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा ने मोहन यादव का नाम जैसे ही आगे किया, बिहार और उत्तर प्रदेश में राजनीति तेज हो गई. दोनों राज्यों में यादव वोटबैंक बहुत मायने रखता है और बिहार में लालू प्रसाद यादव और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की राजनीति ही यादव वोट बैंक के इर्द गिर्द घूमती है. राजनीतिक पंडितों ने भी मोहन यादव को सीएम बनाने के पीछे बिहार और उत्तर प्रदेश के यादवों को साधने की रणनीति करार दिया. हालांकि ऐसा बोलने या लिखने वालों को यह बात समझ लेना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी जो काम जगदंबी यादव से लेकर नित्यानंद राय को आगे करके नहीं कर पाई, वो मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर कैसे कर पाएगी.


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भारतीय जनता पार्टी की ओर से सबसे पहले जगदंबी यादव को आगे किया गया. कई बड़े नेताओं को किनारे कर जगदंबी यादव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. जगदंबी यादव 1981 से लेकर 1984 तक भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे पर यादवों के बीच अपनी पैठ बनाने में नाकामयाब रहे. उसके बाद भाजपा ने 1998 से 2003 के बीच नंदकिशोर यादव को बिहार प्रदेश का अध्यक्ष बनाया. पार्टी ने इस कार्यकाल में अच्छा प्रदर्शन किया पर यादव वोटबैंक भाजपा से दूर ही रहा. 


भाजपा ने हार नहीं मानी और नित्यानंद राय को नवंबर 2016 से सितंबर 2019 के बीच प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में नित्यानंद राय उजियारपुर से सांसदी लड़े और जीतने के बाद देश के गृह राज्यमंत्री बन गए, लेकिन यादव वोटबैंक में सेंधमारी नहीं कर पाए. 


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अमित शाह ने बिहार में गैर बिहारी यादव भूपेंद्र यादव को भी आजमाया. कोर वोटरों पर फोकस करते हुए भाजपा ने यादव वोटबैंक को अपनी ओर करने की कोशिश की. भूपेंद्र यादव को 2020 में बिहार का प्रभारी बनाया गया पर उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ और लालू प्रसाद यादव से यादव वोटबैंक चिपका रहा. इतना ही नहीं, इस चुनाव में लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव बड़े नेता बनकर उभरे और राष्ट्रीय जनता दल विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई.


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इन नेताओं के अलावा भारतीय जनता पार्टी ने हुकुमदेव नारायण यादव, रामकृपाल यादव, अशोक यादव, ओमप्रकाश यादव, रामसूरत राय, नवलकिशोर यादव जैसे नेताओं को आगे किया पर ये नेता भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा सके. बिहार में यादव वोटबैंक पर लालू प्रसाद यादव का शिकंजा था, है और आगे भी बना रहेगा. कम से कम भाजपा के प्रयोगों से निकले निष्कर्ष तो यही बता रहे हैं.