Emergency Special: इन दिनों विपक्ष यह प्रचारित करने में लगा हुआ है कि लोकतंत्र एवं संविधान खतरे में है और असहमति की आवाज को दबाया जा रहा है. ऐसा कहने वालों में कांग्रेस सबसे आगे है. ऐसे में यह याद करना आवश्यक है कि जब 25 जून 1975 की रात को आपातकाल लागू किया गया तो देश में क्या-क्या हुआ था? सत्ता के लालच में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश को इमरजेंसी की बेड़ियों में कैद कर दिया था. आपातकाल के किस्से सुनकर आज भी रुह कांप जाती है. आपातकाल के 22 महीनों में ही देशवासियों को अंग्रेजों का शासन याद आ गया था. इंदिरा के एक फैसले ने जनता के सारे अधिकार छीन लिए थे. रातों-रात मीडिया पर सेंसरशिप लग गई थी.


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सरकार चाहती नहीं थी कि मीडिया के जरिए तेजी से यह सूचना देश के आम जन तक पहुंचे, ऐसे में मीडिया संस्थानों पर अंकुश लगाना जरूरी था. उस दौर में प्रमुख राष्ट्रीय अखबारों के कार्यालय दिल्ली के जिस बहादुरशाह जफर मार्ग पर थे, वहां की बिजली काट दी गई, ताकि अगले दिन अखबार प्रकाशित न हो सकें. जो अखबार छप भी गए, उनके बंडल जब्त कर लिए गए. आदेश था बिजली काट दो, मशीन रोक दो, बंडल छीन लो. 26 जून की दोपहर तक प्रेस सेंसरशिप लागू कर अभिव्यक्ति की आजादी को रौंद दिया गया. अखबारों के दफ्तर में अधिकारी बैठा दिए. बिना सेंसर अधिकारी की अनुमति के अखबारों में राजनीतिक समाचार नहीं छापे जा सकते थे.


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जब सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल सरकार के मनोनुकूल मीडिया को नियंत्रित नहीं कर पाए तो उन्हें हटाकर विद्याचरण शुक्ल को नया मंत्री बनाया गया। लगभग 250 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. सेंसरशिप के कारण जेपी सहित अन्य कौन-कौन नेता कब गिरफ्तार हुए, उन्हें किन-किन जेलों में रखा गया, ये समाचार छपने नहीं दिए गए. यह विडंबना थी कि जिन इंदिरा गांधी ने 1975 में प्रेस सेंसरशिप लागू किया, उन्हीं के पति फिरोज गांधी प्रेस की आजादी और विचारों की स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे. 


मीसा कानून के तहत तकरीबन एक लाख लोगों को सलाखों के पीछे कैद कर दिया गया. जेल जाने वाले विपक्षी नेताओं में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, नीतीश कुमार और लालू यादव तक शामिल थे. इस कानून का इस कदर दुरुपयोग के कारण ही इसे आजाद भारत का सबसे कुख्यात कानून भी कहा जाता है. लालू यादव ने तो इस कानून के विरोध में अपनी बेटी का नाम ही मीसा रख दिया. 


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इमरजेंसी में लोगों को पकड़-पकड़कर नसबंदी की गई. ये फैसला इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी का था. जनसंख्या वृद्धि को लेकर संजय गांधी काफी गंभीर थ. उनको लगता था कि कंडोम को लेकर जो अभियान चलाया गया था, उसका कोई असर नहीं हो रहा है. ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्रियों को आदेश दिया कि वह अपने प्रदेश में नसबंदी अभियान को सख्ती से लागू करें. हरियाणा में तो 3 हफ्ते के भीतर ही 60 हजार से ज्यादा लोगों की नसबंदी करवा दी गई. फिर दूसरे राज्यों पर दबाव पड़ा और फिर तो प्रदेश में अधिकारियों को इसके लिए टारगेट दे दिए गए. कहते हैं कि 50 लाख से ज्यादा लोगों की जबरन नसबंदी कराई गई थी. इसमें 2000 से ज्यादा लोगों की जान तक चली गई थी.