इमरजेंसी के वो काले दिनः जब आई थी लालू यादव की मौत की खबर, जेपी भी सिहर उठे थे
इंदिरा के एक फैसले ने जनता के सारे अधिकार छीन लिए थे. जिस कारण से इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर भी माना जाता है.
Emergency Special: 25 जून 1975, भारतीय इतिहास में हमेशा काला दिन के रूप में याद किया जाता रहेगा. 25 जून 1975 की आधी रात को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया था और यह 21 महीनों तक चला था. कहते हैं कि इंदिरा ने ये फैसला कैबिनेट की मर्जी के बिना लिया था. इंदिरा के एक फैसले ने जनता के सारे अधिकार छीन लिए थे. जिस कारण से इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर भी माना जाता है.
मीडिया पर सेंसरशिप लग गई थी, अटल और आडवाणी सरीखे विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था. पूरे देश में कोहराम मच गया था. हालांकि इंदिरा की इस तानाशाही ने पूरे विपक्ष को एकजुट कर दिया था. पूरे देश में आंदोलन होने लगे और इस आंदोलन का केंद्र बिंदु बना बिहार. बिहार में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र संगठनों ने इंदिरा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. इस आंदोलन का नाम पड़ा जेपी आंदोलन.
आपातकाल ने बिहार को राजनीति की एक नई पौध दी थी. मौजूदा दौर के कई बड़े नेता इसी आंदोलन की उपज हैं. इन नेताओं में लालू यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी और रविशंकर प्रसाद सिन्हा भी शामिल हैं. जेपी के आंदोलन में सक्रिय रहे लालू यादव उस वक्त एक छात्र नेता थे लेकिन आंदोलन के बाद वो मंझे हुए राजनेता के रूप में सामने आए. आंदोलन एक खबर ऐसी आई थी, जिसने जेपी को भी अंदर तक झकझोर दिया था. वो खबर थी लालू यादव के मौत की.
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यह वाकया 18 मार्च 1974 का है. इंदिरा सरकार के खिलाफ छात्र सड़कों पर उतर आए थे. वहीं आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने सेना को मैदान में उतार दिया था. उस दिन सेना ने आंदोलनकारियों को जमकर पीटा था. इस लाठीचार्ज में कई लोग बुरी तरह से घायल हुए. इस घटना के बाद यह अफवाह फैल गई कि सेना की पिटाई से बुरी तरह घायल लालू यादव की मौत हो गई है. ये खबर आग की तरह फैल गई. खबर जैसे ही जेपी तक पहुंचे वो सिहर उठे. बाद में लालू के सामने आने के बाद मामला शांत हुआ.