बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Congress President Mallikarjun Khadge) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से मुलाकात के बीच तय हुई रणनीति अब धरातल पर उतरने लगी है. नीतीश कुमार को विपक्षी एकता की जिम्मेदारी मिली तो अब वे इसके लिए जी-जान से लग गए हैं. तभी तो उन्होंने एक ही दिन में पटना से कोलकाता और फिर लखनउ की दूरी नाप दी. कोलकाता और लखनउ में उनकी ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के बीच मुलाकात हुई और दोनों नेताओं ने विपक्षी एकता के लिए हामी भर दी है. नीतीश कुमार को तो ममता बनर्जी ने यहां तक सलाह दी है कि वे पटना में आॅल पार्टी मीटिंग (All Party Meeting) बुलाएं. शुरुआती सफलता से नीतीश कुमार खासे उत्साहित हैं और वे सभी क्षेत्रीय दलों से आने वाले दिनों में बातचीत कर सकते हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल... प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा? वैसे तो सभी दलों में इस बात पर एकराय है कि पीएम पद जब खाली होगा तो मिल-बैठकर तय कर लिया जाएगा. बिहार में सहयोगी दल राजद तो नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल (Nitish Kumar PM Material) शुरू से बता रही है और इसी आधार पर महागठबंधन पार्ट 2 (Mahagathbandhan 2.0) की सरकार बिहार में देखने को मिली पर नीतीश कुमार बीच बीच में कहते रहते हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनना. इस बात से राजद (RJD) असहज हो जाती है. अगर नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे तो तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) बिहार के सीएम कैसे बनेंगे. अब आते हैं उस सवाल पर कि क्या नीतीश कुमार का प्रधानमंत्री बनना उतना आसान है, जितना कि सोचा जा रहा है?


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15 सीटें जीत भी लें तो कैसे पीएम पद तक पहुंचेंगे नीतीश?


इसके लिए सबसे पहले तो बिहार की लोकसभा सीटों की बात करनी होगी. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. महागठबंधन में विधानसभा सीटों के लिहाज से राजद सबसे बड़ी पार्टी है तो लोकसभा की सीटों की बात करें तो नीतीश कुंमार की जनता दल यूनाइटेड राजद पर बीस साबित होती है. जनता दल यूनाइटेड के 16 सांसद 2019 के लोकसभा चुनाव में जीतकर आए थे. अगर महागठबंधन के बीच सीटों का बंटवारा होता है तो जेडीयू शायद ही अपनी जीती हुई सीटें बांटने को राजी हो. चलिए, मान लेते हैं कि 40 में से 15-15 सीटें राजद और जेडीयू बांट लेते हैं और 10 सीटें महागठबंधन के अन्य दलों जैसे कांग्रेस, हम और वाम दलों के लिए छोड़ देते हैं. और यह भी मान लेते हैं कि नीतीश कुमार की जेडीयू सभी 15 सीटें जीत जाती है तो क्या नीतीश कुमार 15 सांसदों के बल पर प्रधानमंत्री बन सकते हैं. वैसे तो राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है. मधु कोड़ा निर्दलीय होकर मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो नीतीश कुमार भी बन सकते हैं पर क्या नीतीश कुमार से अधिक सांसदों वाली पार्टियां क्या नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का पद हासिल करने देंगी. इनमें ममता बनर्जी, शरद पवार बड़ी बाधा बन सकते हैं. 


तब देवगौड़ा की पार्टी देश में तीसरे नंबर की पार्टी थी


तो क्या नीतीश कुमार इसी हकीकत को ध्यान में रखकर बयान दे रहे हैं कि वे प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते. जब भी पत्रकार नीतीश कुमार से पीएम पद को लेकर सवाल पूछते हैं तो उनका जवाब होता है कि उन्हें पीएम नहीं बनना. नीतीश कुमार राजनीति के मजे हुए धुरंधर हैं और वे जानते हैं कि पीएम पद को लेकर कुछ भी उल्टा-सीधा बयान निकल गया तो विपक्षी एकता तार-तार हो जाएगी. एक फाॅर्मूला 1996 का भी है, जब अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार गिर गई थी और 46 सीटों वाले जनता दल की ओर से एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया था. उस समय जनता दल पूरे देश में तीसरे नंबर की पार्टी बनी थी. पहले नंबर पर भाजपा 161 सीटों के साथ, दूसरे नंबर पर कांग्रेस 140 सीटों के साथ और तीसरे नंबर पर जनता दल 46 सीटों के साथ रही थी. माकपा को 32 सीटें आई थीं और वह पूरे देश में चैथे नंबर की पार्टी बनी थी. हालांकि उस समय कई नेताओं ने माकपा के ज्योति बसु को पीएम पद के लिए आगे करने की मांग की थी पर पार्टी की पोलित ब्यूरो ने उसे खारिज कर दिया था. बाद में पार्टी की ओर से इसे ऐतिहासिक भूल करार दिया गया था. 


सीटें कम होने पर ममता-पवार को नागवार गुजरेंगे नीतीश 


अगर देवगौड़ा माॅडल की भी बात आती है तो देश में सीटों के लिहाज से तीसरे या चौथे नंबर पर आने वाले दल को ही यह मौका मिल सकता है. हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि तीसरे या चौथे नंबर की पार्टी को कितनी सीटें हासिल होती हैं. अगर 15 सीट हासिल करके नीतीश कुमार की पार्टी पूरे देश में तीसरे या चौथे नंबर की पार्टी बनती है, तभी नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बन सकते हैं. हालांकि यह कहना अतिश्योक्ति होगी कि नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे या चौथे नंबर की पार्टी बन सकती है, क्योंकि जेडीयू की बिहार में स्थिति से तुलना करें तो तृणमूल कांग्रेस बंगाल में कही ज्यादा मजबूत है. एनसीपी महाराष्ट्र में कही ज्यादा मजबूत है. आम आदमी पार्टी तो राष्ट्रीय पार्टी बन गई है तो हो सकता है कि दिल्ली, पंजाब, गुजरात और गोवा को मिलाकर उसके पास नीतीश कुमार से ज्यादा सीटें हों तो वह नीतीश कुमार को पीएम पद पर क्यों देखना  चाहेगी? 


मौका मिला तो क्या कांग्रेस सरकार बनाने से पीछे हटेगी?


और सबसे बड़ा सवाल... क्या दूसरे नंबर पर रहकर भी कांग्रेस नीतीश कुमार या अन्य किसी नाम को इतना अहमियत देगी? माना कि कांग्रेस इस समय कमजोर है और वह बीजेपी का अकेले मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है, लेकिन अगर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को बहुमत नहीं मिलता है तो क्या वह किसी नेता को वाॅकओवर देगी... शायद नहीं. इस सवाल के अंदर एक और सवाल है कि क्या कांग्रेस से टूटकर बनी पार्टियां कांग्रेस को फिर से वाॅक ओवर देने की स्थिति में होंगे. क्योंकि अगर कांग्रेस मजबूत होती है तो इसका सीधा नुकसान यूपी में समाजवादी पार्टी, बिहार में राजद और जेडीयू, बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, महाराष्ट्र में एनसीपी को हो सकता है. पूरे देश में बीजेपी विरोध के नाम पर कांग्रेस से दूसरे नंबर की सीट हथियाने की कोशिश में खड़ी आम आदमी पार्टी क्या ऐसा चाहेगी कि कांग्रेस फिर से खड़ी हो जाए... शायद नहीं. तो फिर आगे-आगे देखिए होता है क्या?