पटना: बिहार की राजनीति में इन दिनों मुकेश सहनी का नाम काफी चर्चा में है. उनके पिता की हत्या के बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि वो एनडीए गठबंधन में शामिल हो सकते हैं और उन्हें गठबंधन की ओर से राज्यसभा भेजा जा सकता है. हालांकि इन अफवाहों को तब विराम लगा जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने राज्यसभा के लिए अपना नामांकन दाखिल किया. हालांकि उपेंद्र कुशवाहा के नामांकन दाखिल करने के बाद अब ये सवाल उठने लगा है कि क्या बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा का हाल भी मुकेश सहनी जैसा कर देगी?


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दरअसल मुकेश सहनी तब राजग के साथ थे तब विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को सीटें नहीं दी जा रही थीं और उनकी पार्टी को कुछ सीटें मिली भी तो बीजेपी के प्रत्याशियों के साथ. चुनाव के बाद बीजेपी ने मुकेश सहनी को बिहार सरकार में मंत्री भी बनाया, लेकिन विधान परिषद् की उन्हें ऐसी सीट दी गई जिसका कार्यकाल बीच में ही खत्म हो जाए. एक तरफ उनका कार्यकाल खत्म हुआ और दूसरी तरफ उनका मंत्रीपद भी चला गया. दूसरी ओर उनकी पार्टी के विधायकों ने पूरी पार्टी को खत्म करते हुए बीजेपी में शामिल हो गए. जिसके बाद मुकेश सहनी ने इसे छल-प्रपंच बताया और लोकसभा चुनाव के पहले राष्ट्रीय जनता दल की शरण ले ली.


जहां लोकसभा चुनाव में उन्हें अपने प्रत्याशी उतारने का मौका तो मिला, लेकिन वो एक भी सीट जीत नहीं पाए. जिसके बाद से ही मुकेश सहनी राजनीतिक वजूद के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं. वहीं उपेंद्र कुशवाहा की अगर बात करें तो लोकसभा चुनाव के दौरान वो अपनी पसंदीदा सीट काराकट से चुनाव लड़े. लेकिन बीजेपी में रहते हुए भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह ने निर्दलीय नामांकन करके उनका खेल बिगाड़ दिया. उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव में इस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे थे. जिसके बाद बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भेजने की घोषणा कर दी. हालांकि उनके नामांकन को काफी दिनों तक रोक कर रखा गया.


बाद में नामांकन की आखिरी तिथी से एक दिन पहले बीजेपी ने अपनी पार्टी से मनन कुमार मिश्रा को राज्यसभा के लिए चुनावी मैदान में उतारा. जिसके बाद उपेंद्र कुशवाहा आशंकित हो गए कि उन्हें मीसा भारती या विवेक ठाकुर के इस्तीफे से खाली हुई सीट दी जाएगी. बुधवार को जब उन्होंने अपना नामांकन दाखिल किया तो उन्हें विवेक ठाकुर वाली सीट पर नामांकन करना पड़ा. इस सीट के लिए करीब दो साल का कार्यकाल अभी बचा हुआ है, जबकि मीसा भारती वाली सीट का कार्यकाल करीब चार साल का है. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि केंद्रीय मंत्री का अनुभव रखने और राजग में कुशवाहा जाति की अहम भागीदारी होने के बावजूद उपेंद्र कुशवाहा के साथ कहीं-न-कहीं खेल तो हुआ ही है.


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इससे पहले पिछले साल नीतीश कुमार ने जब जेडीयू की कमान संभाली तो एक महीने के अंदर जेडीयू ने बीजेपी के साथ वापसी की. लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच जेडीयू की एनडीए में एंट्री से उपेंद्र कुशवाहा को बड़ा झटका लगा. इससे पहले वो लोकसभा चुनाव में अफना पार्टा के लिए कम-से-कम तीन सीटें सोचकर रखे थे, लेकिन जेडीयू के एनडीए में शामिल होने होने बाद उनके हिस्से में सिर्फ काराकाट की सीट आई. जिसके बाद वो मुस्कुराते हुए चुनावी मैदान में उतरे. वहीं चुनाव हारने के बाद राज्यसभा के लिए उनका नाम आने के बाद भी मुस्कुराते दिखे. वहीं अभ दो साल के लिए राज्यसभा में मौका मिलने के बाद भी वो मुस्कुराते हुए नामांकन किया. ऐसे में ये देखना दिलचस्प हो जाता है कि उनकी इस मुस्कुराहट में क्या कोई बड़ी योजना छिपी है या फिर बिहार विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें कोई बड़ा भरोसा दिया गया है.


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