Jharkhand Politics: झारखंड के चुनावी मैच में हेमंत सोरेन ने बीजेपी को करारी शिकस्त दी है. बीजेपी की ओर से असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा अपना पूरा जोर लगाने में जुटे थे. उनके आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान के बाद भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और पार्टी की सीटें पहले से भी कम हो गईं. बता दें कि झारखंड को लेकर बीजेपी बहुत गंभीर थी. उसने राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी, डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, हिंदुत्व के फायर ब्रांड चेहरे और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को इस राज्य में कमल खिलाने की जिम्मेदारी दी थी, लेकिन पार्टी की सारी रणनीति धरी की धरी रह गई. एग्जिट पोल्स में बीजेपी की सरकार बन रही थी, लेकिन जब रिजल्ट आया तो 81 सीटों वाले झारखंड में एनडीए को 22 जबकि इंडिया गठबंधन ने 56 सीटें जीती हैं और सत्ता में वापसी की है.


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अब बीजेपी नेता इस तरह के परिणाम पर आत्ममंथन करने की बात कह रहे हैं. वहीं चुनावी विश्लेषक भी बीजेपी की शर्मनाक हार की समीक्षा करने में जुटे हैं. बीजेपी के शर्मनाक प्रदर्शन का सबसे बड़ा कारण प्रदेश नेतृत्व रहा. दरअसल, बड़े स्थानीय नेताओं की चिंता अपनों तक ही सीमित रही. अर्जुन मुंडा को पत्नी की चिंता थी तो चम्पाई सोरेन अपने बेटे के लिए कोशिश में जुटे रहे. बाबूलाल मरांडी को जेवीएम से आए नेताओं का फिक्र था. इनके वंशवादी व्यवहार के बीच साधारण कार्यकर्ता कोने में खड़ा होकर तमाशा देख रहा था. बाहरी नेताओं को टिकट दिए जा रहे थे, जबकि असली भाजपाई को सिर्फ भीड़ जुटाने के काम पर लगाया गया था.


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बाबूलाल मरांडी ने लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सारे जिलाध्यक्षों को बदल दिया था और इसमें भी जेवीएम से आए लोगों को तरजीह दी थी. झारखंड के पार्टी प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी लगातार नाराजगी जताते रहे, लेकिन उनको भी दरकिनार कर दिया गया. पूरा चुनाव मंडल कमेटी के बिना ही लड़ा गया, मतलब मंडलों के नए नेतृत्व को काम करने के लिए कार्यकर्ता नहीं मिला. विधानसभा के नतीजों ने साबित कर दिया कि ये तो बड़ा भारी ब्लंडर किया गया था.


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