Lok Sabha Election 2024: नया साल शुरू हो चुका है और लोकसभा चुनाव को लेकर एक तरह से सियासी सरगर्मी भी शुरू हो चुकी है. भाजपा जहां रामरथ पर सवार हो चुकी है और पूरे देश को राममय करने की तैयारी में है, वहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों में रूठने और मनाने का सि​लसिला तेज हो रखा है. बताया जा रहा है कि इंडिया ब्लॉक को जिस नीतीश कुमार ने मूर्त रूप दिया, सभी दलों को एक मेज पर बैठाया, पटना से लेकर कोलकाता और चेन्नई से लेकर मुंबई तक एक कर दिया, वहीं रूठे हुए हैं. रूठे भी क्यों न! जिस नेता के कहने पर ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव नाराज होने के बाद भी कांग्रेस के साथ एक टेबल पर बैठकर बातचीत को राजी हो गए, अब उसी आदमी को एक अदद संयोजक पद के लिए तरसाया जा रहा है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इंडिया की चौथी बैठक में भी जब कुछ नहीं मिला तो सब्र का पैमाना टूट गया और नीतीश कुमार ने सहयोगी दलों और खासतौर से कांग्रेस को संदेश देना जरूरी समझा. दिल्ली में इंडिया ब्लॉक की 19 दिसंबर को खत्म हुई बैठक के बाद नीतीश कुमार ने 29 दिसंबर को जेडीयू कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुला ली. शुरू में तो इसे हल्के में लिया गया पर समय नजदीक आने के साथ ही यह तय होता चला गया कि ललन सिंह अब जेडीयू अध्यक्ष पद ज्यादा समय तक नहीं रख पाएंगे. उन्होंने जेडीयू अध्यक्ष होने के नाते इंडिया ब्लॉक की बैठक में नीतीश कुमार के नाम की कोई पैरवी ही नहीं की. उल्टे जब इंडिया ब्लॉक की बैठक खत्म हुई तो ललन सिंह, नीतीश कुमार के साथ पटना नहीं लौटे, बल्कि अगले दिन लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के साथ आए. ललन सिंह की राजद के साथ बढ़ती करीबी के चलते उन्हीं के सरकार पर संकट आन पड़ा और उन्होंने ललन सिंह की अध्यक्ष पद से छुट्टी कर खुद अध्यक्षी संभाल ली. 


जब से नीतीश कुमार ने जेडीयू अध्यक्ष का पद संभाला है, तब से इंडिया ब्लॉक के नेताओं के होश उड़े हुए हैं. इंडिया ब्लॉक के नेताओं को लगता है कि अगर नीतीश कुमार को सही समय से नहीं रोका गया तो वे वापस भाजपा के साथ जा सकते हैं और इससे इंडिया ब्लॉक को भारी नुकसान हो सकता है. दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उत्तर भारत में अकेले ऐसे चेहरे बचे हैं, जो इंडिया के लिए मुफीद हो सकते हैं. अखिलेश यादव पर परिवारवाद का, लालू परिवार पर भ्रष्टाचार का दाग है, अरविंद केजरीवाल भी भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा के निशाने पर हैं, हेमंत सोरेन पर भी ऐसा ही आरोप है. इसलिए नीतीश कुमार को इंडिया में बनाए रखने के लिए अब सभी दलों ने सरेंडर की मुद्रा अपना रखी है. खुद राजद ने भी नीतीश कुमार को संयोजक बनाए रखने के लिए हामी भर दी है और लालू प्रसाद और मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच तो इस बाबत बात भी हुई है. 


बताया जा रहा है कि अगले कुछ दिनों बाद सोनिया गांधी से भी नीतीश कुमार के मिलने का कार्यक्रम बनाया जा सकता है. इस तरह इंडिया ब्लॉक में रूठने और मनाने का सिलसिला तेज हो गया है. खबर यह भी है कि नीतीश कुमार को संयोजक का कार्यभार दिया जा सकता है, लेकिन क्या कांग्रेस इतनी दिलेर हो सकती है कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन का नेतृत्व नीतीश कुमार के भरोसे छोड़ दे. इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस इंडिया की चेयरमैनी अपनी पास रखेगी और नीतीश कुमार को संयोजक का पद थमा देगी. इस तरह इंडिया का नेतृत्व भी कांग्रेस के पास ही रहेगा. चेयरमैन के रहते संयोजक का काम बहुत ज्यादा नहीं होता और उसका कोई मतलब भी नहीं होता. इसलिए बहुत संभव है कि मल्लिकार्जुन खड़गे को इंडिया का चेयरमैन और नीतीश कुमार को संयोजक बनाया जा सकता है. 


ये भी पढ़ें:नीतीश को संयोजक बनाने पर पवार-अखिलेश-ममता-केजरीवाल सहमत, उद्धव ने की फोन पर बात


अगले 2 दिनों में इंडिया ब्लॉक के नेताओं की वर्चुअल मीटिंग है. हो सकता है कि उसी मीटिंग में इस बात का ऐलान कर दिया जाए. कुछ दलों को मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम चेयरमैन पद के लिए प्रस्तावित करने को तो कुछ दलों को नीतीश कुमार का नाम संयोजक पद के लिए प्रस्तावित करने को कहा जा सकता है. इन सब कवायद को देखते हुए कहा जा सकता है कि कांग्रेस की राजनीति को समझना इतना आसान भी नहीं है, जितना कि क्षेत्रीय दल सोचते हैं.