Yellow Paper controversy: बिहार में नेता और अधिकारी के बीच का विवाद अब यहां की सियासत का तापमान बढ़ा रहा है. पीत पत्र विवाद ने प्रदेश में नेता और अधिकारी के बीच की दूरी बढ़ा दी है. बता दें कि बिहार में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और विभाग के सचिव केके पाठक के बीच ठन गई है. इसके बाद से बिहार का सियासी पारा चढ़ गया है. हालांकि नेता जी के पीत पत्र पर ही बात नहीं रूकी अधिकारी केके पाठक ने भी मंत्री जी के नाम पीत पत्र जारी कर दिया. अब यह पूरा मामला सियासत के केंद्र में आ गया. वैसे आपको बता दें कि केके पाठक नीतीश कुमार के सबसे करीबी और चहेते अधिकारियों में से एक हैं. बिहार के शिक्षा विभाग में सुधार के लिए जून में ही उनको इस विभाग में लाया गया है और जुलाई आते-आते विभाग के मंत्री चंद्रशेखर और केके पाठक के बीच विवाद गहरा गया. 


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वैसे आपको बता दें कि नीतीश कुमार के इस चहेते अधिकारी के फॉर्मूले पर ही बिहार में नई शिक्षकों की भर्ती का खाका तैयार हुआ है. बीपीएससी की तरफ से बिहार में होने वाली शिक्षक भर्ती का पूरी रूपरेखा के के पाठक ने ही तैयार की है. अब आपको बता दें कि केके पाठक (Keshav Kumar Pathak IAS) ने मंत्री जी से ऐसे पंगा लेने की हिम्मत कैसे दिखाई तो पहले आपको केके पाठक के बारे में जान लेना चाहिए. 


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केके पाठक 1990 बैच के IAS अधिकारी हैं. हालांकि वर्तमान में नीतीश सरकार के दो मंत्री रत्नेश सादा और चंद्रशेखर के रडार पर पहले से केके पाठक हैं. वैसे केके पाठक से इससे पहले भी कई वरिष्ठ नेता परेशान रहे हैं. केके पाठक की हनक और काम करने के तरीके की वजह से लालू प्रसाद यादव से लेकर पूर्व सांसद रघुनाथ झा तक परेशान रहे हैं. सुशील मोदी को भी सनकी कहने पर 2015 में केके पाठक लीगल नोटिस तक भेज चुके हैं. 


केके पाठक ने जिस भी विभाग में काम किया वहां खूब सुर्खियां बटोरी, आबकारी विभाग में रहते हुए पाठक का एक वीडियो गाली गलौज करते हुए वायरल हुआ था लेकिन उनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई. वैसे इससे पहले भी 2015 में नीतीश जब महागठबंधन के दम पर सीएम बने थे तो दिल्ली से केके पाठक को बिहार बुलाया गया था. मतलब आप साफ समझ सकते हैं कि पाठक नीतीश के कितने पसंदीदा आधिकारियों में से रहे हैं. 


केके पाठक का वैसे विवादों से पुराना नाता रहा है. गिरिडीह में जब वह एसडीओ थे तब से ही उनके साथ विवादों का सिलसिला चल निकला, 1996 में जब वह लालू यादव के गृह जिले गोपालगंज के डीएम बने तब प्रदेश में सरकार राबड़ी देवी की थी. यहां एमपीलैड फंड से बने एक अस्पताल का उद्घाटन केके पाठक ने सफाईकर्मी से करवा दिया. उनकी इस हनक से तंग आकर उन्हें वापस सचिवालय बुला लिया गया. 


साल 2005 में तो लालू यादव के साले साधु यादव पर जिला बदर की कार्रवाई केके पाठक ने कर दी थी. इसकी तब खूब चर्चा हुई. पाठक तब साधु यादव के खिलाफ चुनाव आयोग तक पहुंच गए और साधु यादव को पूरे चुनाव भर गोपालगंज से बाहर रहना पड़ा जबकि तब लालू यादव बिहार की सत्ता में वापसी की तैयारी में थे.