Lok sabha Elction 2024 Nawada Seat: बरबीघा, रजौली, हिसुआ, नवादा, गोबिंदपुर, वारिसलीगंज इन 6 विधानसभा सीटों को मिलाकर बिहार में एक लोकसभा सीट का गठन किया गया है जिसका नाम नवादा लोकसभा सीट है. इस सीट का चुनावी गणित भी बिल्कुल अलग है. इस सीट पर अभी तक के लोकसभा चुनाव में दो बार नारी शक्ति भी अपना दम दिखा चुकी है. 1957 में इस सीट से पहली बार महिला सांसद कांग्रेस की सत्यभामा देवी बनीं वहीं  41 साल बाद राजद की मालती देवी ने यह सीट 1998 में जीती. जबकि इस सीट पर महिला मतदाताओं की संख्या आधी के करीब है. 


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बिहार की नवादा लोकसभा सीट के बारे में आपको बता दें कि यह सीट जातियों के भरोसे ही जीत और हार तय करती आई है. जबकि इस सीट पर विकास कभी मुद्दा ही नहीं रहा है. इस सीट पर 1957 से लेकर आजतक चुनाव में इसको लेकर कोई खास अंतर नहीं देखा गया है. यहां जाति मुद्दे इतने प्रभावी हैं कि विकास से जुड़े तमाम मुद्दे चुनाव के समय यहां गौन हो जाते हैं. यहां जातीय फैक्टर ही चुनाव जितने का हथियार रहा है. 
 
इस सीट को 10 साल तक भाजपा ने अपने कब्जे में रखा और अब 2019 में यह सीट NDA गठबंधन के तहत लोजपा के हिस्से आई और यहां से लोजपा प्रत्याशी चन्दन सिंह ने जीत दर्ज की. इससे ठीक पहले यह सीट 2014 में भाजपा के फायरब्रांड नेता और अभी भी केंद्र सरकार के मंत्री गिरिराज सिंह ने जीती थी. 2019 में गिरिराज सिंह को बेगूसराय की सीट मिली तो यह सीट लोजपा के पास चली गई. 


पहले यह सीट सामान्य सीट नहीं होकर आरक्षित सीट थी तब भी यहां जातीय समीकरण ही काम आता था लेकिन 2009 में परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य सीट बन गया तो भी यहां यही फैक्टर हावी रहा. 1962 से पहले भी यह सामान्य सीट था जिसे 1962 में बदलकर सुरक्षित सीट किया गया था. 


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यह सीट ऐतिहासिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण रहा है. इस सीट प्राचीन समय में शक्तिशाली मगध साम्राज्य का मुख्य अंग रहा है. यह क्षेत्र महाभारत के काल में जरासंध की शासन का हिस्सा भी रहा है. यहां का तपोवन जरासंध का जन्म स्थान माना जाता है तो वहीं यहां के पकड़डीहा के बारे में कहा जाता है कि यहां जरासंध को भीम ने मल्लयुद्ध में हराया था. यह जैन और बौद्ध धर्म के मानने वालों के लिए भी तपस्या स्थाल रहा है. यहां की सीट पर यादव और भूमिहार वोट हमेशा से निर्णायक रहे हैं. इस सीट पर इन दोनों जातियों के वोट का प्रतिशत 30-30 है.