Lok Sabha Election 2024: जुबान से राजद और जमीन पर जेडीयू के खिलाफ आक्रामक होगी बीजेपी!
Lok Sabha Election 2024: बीजेपी नेताओं की रैली और प्रेस कॉन्फ्रेंस में लालू यादव के जंगलराज पर निशाना साधा जाता है, जनता को उस दौर की याद दिलाई जाती है. दूसरी ओर नीतीश कुमार के वोटबैंक को अपनी ओर शिफ्ट किया जा रहा है.
Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मैदान सजने लगा है. हर दल अपनी-अपनी रणनीति सेट करने में जुटा है. इस बार के लोकसभा चुनाव में धुरी का काम बिहार कर रहा है, क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही वो नेता हैं, जिन्होंने बीजेपी के खिलाफ पूरे विपक्ष को एकजुट किया है. लिहाजा, बीजेपी के निशाने पर प्रमुख रूप से जेडीयू रहने वाली है. बीजेपी ने इस बार जेडीयू से विश्वासघात का बदला लेने की रणनीति तैयार कर ली है. बिहार में भारतीय जनता पार्टी रणनीति को देखें तो पार्टी नेता जुबान से तो राजद पर लेकिन जमीन पर जदयू के खिलाफ आक्रामक है.
बता दें कि नीतीश कुमार ने जातिगत सर्वे कराकर और उसके आधार पर आरक्षण का कोटा बढ़ाकर एक बड़ा मंच तैयार कर दिया है. जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में अत्यंत पिछड़ा 36 प्रतिशत तो पिछड़ा वर्ग 27 प्रतिशत हैं. वहीं प्रदेश में अनुसूचित जाति की आबादी 19 प्रतिशत से अधिक है तो 1.68 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या बताई गई है. इसी वोटबैंक पर नीतीश कुमार और लालू यादव का राजनीतिक साम्राज्य टिका हुआ है. मुस्लिम और यादव वोटबैंक पर लालू परिवार का एकाधिकार माना जाता है. जातीय सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में 17.70 फीसदी मुसलमान और 14 फीसदी यादव आबादी है.
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दलित, महादलित, पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वोटबैंक पर नीतीश कुमार का अधिपत्य माना जाता है. इसके अलावा पसमांदा मुसलमानों की पहली पसंद भी नीतीश कुमार रहे हैं. हालांकि, अब यह वोटबैंक दरकने लगा है. महादलित से जीतन राम मांझी और पिछड़ा वर्ग से उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार के काफी करीबी हुआ करते थे, लेकिन अब अपनी-अपनी पार्टी बनाकर बीजेपी के सहयोगी हैं. दलितों के बड़े नेता चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस भी बीजेपी के साथ हैं.
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मोदी सरकार की तमाम योजनाओं का सर्वाधिक लाभ इसी वोटबैंक को मिलता है. मोदी सरकार की योजनाओं से पसमांदा मुसलमानों के जीवन में भी बड़ा सुधार हुआ है. लिहाजा अब पसमांदा मुसलमानों का नजरिया भी बीजेपी के प्रति बदलने लगा है. अगर लोकसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति काम कर गई, तो नीतीश कुमार के पैरों तले से जमीन खिसक सकती है. विधानसभा चुनाव में इसकी झलक दिख चुकी है. उस चुनाव में चिराग पासवान ने अकेले ही जेडीयू को तीसरे नंबर पर पहुंचा दिया था.