Lok Sabha Election 2024 Madhubani Seat: मधुबनी सीट पर हुकुमदेव नारायण खिलाते रहे कमल, जातीय जनगणना से अबकी बिगड़ेगा खेल?
मधुबनी सीट को बीजेपी के वरिष्ठ नेता हुकुमदेव नारायण यादव का गढ़ कहा जाता है. इस सीट से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड हुकुमदेव के नाम है.
Madhubani Lok Sabha Seat profile: बिहार के मधुबनी जिला का इतिहास काफी पुराना है. हालांकि, 1972 से पहले तक यह क्षेत्र दरभंगा जिले का हिस्सा हुआ करता था. कहा जाता है मां सीता का जन्म मधुबनी की सीमा पर स्थित सीतामढ़ी में हुआ था. महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातकाल के कुछ वर्ष यहीं पर ही छिपकर बिताए थे. मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों ने यहां पर लंबे समय तक शासन किया.
मधुबनी लोकसभा क्षेत्र का विस्तार मधुबनी और दरभंगा दो जिलों में है. इस लोकसभा क्षेत्र के अंदर 6 सीटें आती हैं, जिनमें 4 सीटें मधुबनी जिले की हैं जबकि 2 सीटें दरभंगा की हैं. 1976 से पहले यह क्षेत्र जयनगर लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. अपने चुनावी इतिहास के शुरुआती दिनों में यहां कांग्रेस का दबदबा रहा. इसके बाद यह वामपंथियों का गढ़ बन गई थी. मौजूदा दौर में यहां बीजेपी का कब्जा है.
हुकुमदेव नारायण का है गढ़
मधुबनी सीट को बीजेपी के वरिष्ठ नेता हुकुमदेव नारायण यादव का गढ़ कहा जाता है. इस सीट से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड हुकुमदेव के नाम है. वे यहां से 5 बार संसद पहुंचे पहुंच चुके हैं. मौजूदा समय में उनके बेटे अरुण यादव यहां से सांसद हैं. 2019 में उन्होंने बीजेपी की टिकट पर जीत हासिल की थी.
इस सीट के सामाजिक समीकरण
इस सीट पर ब्राह्मणों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है. 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के अनुसार, इस सीट पर करीब 2 लाख 70 हजार ब्राह्मण हैं. यादव करीब 2 लाख 35 हजार, मुस्लिम करीब 2 लाख 15 हजार, अति पिछड़ा करीब 6 लाख 10 हजार, दलित करीब 2 लाख, कोइरी करीब 1 लाख 10 हजार हैं. मधुबनी चित्रकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है, मधुबनी पेंटिग के अलावा ये जिला मखाना,आम ,लीची, धान, ईख उत्पादन के लिए भी मशहूर है.
पिछले चुनाव नतीजे पर नजर
पिछले चुनाव में यहां बीजेपी के अशोक यादव ने महागठबंधन प्रत्याशी बद्री कुमार पूर्वे को मात दी थी. अरुण कुमार को 5,95,843 वोट मिले थे. जबकि महागठबंधन में यह सीट वीआईपी के हिस्से में आई थी और वीआईपी के बद्री कुमार को सिर्फ 1,40,903 वोट ही मिले थे. इस तरह से बीजेपी प्रत्याशी ने करीब 4 लाख वोटों से जीत हासिल की थी. हालांकि, जातीय जनगणना के चलते इस क्षेत्र के समीकरण काफी बदल चुके हैं. मौजूदा दौर में कोई भी दल जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता है.