Sasaram Lok Sabha Seat Profile: बिहार के रोहतास जिले में स्थित सासाराम का इतिहास काफी पुराना है. मुगल शासक शेर शाह सूरी का जन्म यहीं हुआ था. उसका मकबरा आज भी यहां बना हुआ है, तो हिंदुओं की आस्था का केंद्र देवी चंडी का एक भव्य मंदिर भी यहीं हैं. शेर शाह द्वारा बनवाया गया जीटी रोड (ग्रांड ट्रक रोड) यहीं से होकर गुजरता है. मुगल काल में बना यह रोड आज भी दिल्ली को पश्चिम बंगाल से जोड़ने का काम करता है. सासाराम को 'गेट वे ऑफ बिहार' भी कहा जाता है. यूपी का वाराणसी शहर इससे जुड़ा हुआ है. 


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सासाराम सुरक्षित संसदीय क्षेत्र है. इस सीट के अंदर 6 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें 3 सीटें कैमूर जिले की और 3 सीटें रोहतास जिले की हैं. 6 विधानसभा सीटों में मोहनिया, भभुआ, चैनपुर, चेनारी, सासाराम और करगहर शामिल हैं. इनमें चेनारी और मोहनिया एससी सुरक्षित सीट हैं. कांग्रेस के मजबूत किलों में से एक थी सासाराम संसदीय सीट. बाबूजी के नाम से विख्यात दिवंगत नेता जगजीवन राम को यहां की जनता ने काफी प्यार दिया. 


जातीय समीकरण


कुशवाहा-15% 
मुस्लिम-12%
सवर्ण-22%
दलित-20%
अन्य-38%


लगातार 8 बार सांसद चुने गए बाबूजी


पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम इस सीट से आजीवन सांसद रहे. 1952 से 1984 तक इस सीट पर हुए 8 आम चुनाव में हर बार जगजीवन राम को जीत मिली. 1952 से 1971 तक वे कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे. आपातकाल के बाद 1977 में उन्होंने लोक दल की टिकट पर जीत हासिल की. 1980 में जनता पार्टी के टिकट पर दिल्ली पहुंचे. 1984 के आम चुनाव से पहले उन्होंने अपनी पार्टी बना ली और इंडियन कांग्रेस जगजीवन के टिकट पर संसद पहुंचे. जुलाई 1986 में उनका निधन हो गया.


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मीरा कुमार से गंवा दी विरासत


बाबूजी जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार अपने पिता की राजनीतिक विरासत को सही से संभाल नहीं सकीं. 1989 में कांग्रेस ने मीरा को टिकट थमाया था तो सभी को उनकी जीत पक्की लग रही थी, लेकिन इस मान्यता को जनता दल के प्रत्याशी छेदी पासवान ने ध्वस्त कर दिया. उन्होंने एक लाख से ज्यादा वोटों से मीरा को हराया था. 1996 से यहां बीजेपी के मुनीलाल ने लगातार 3 जीत दर्ज की. हालांकि, मीरा कुमार ने 2004 में वापसी की और फिर 2009 में भी लगातार दूसरी बार सांसद चुनी गईं.


मोदी लहर में खिला कमल


2014 और 2019 की मोदी लहर में इस सीट पर कमल खिला. वाराणसी से पीएम मोदी के चुनाव लड़ने का इस सीट पर काफी असर देखने को मिला. लगातार दोनों बार बीजेपी के छेदी पासवान ने मीरा कुमार को मात दी. मीरा कुमार की असफलता का कारण रहा उनकी निष्क्रियता. स्थानीय लोगों का कहना है कि मीरा कुमार दिल्ली में रहती हैं, बस चुनाव के वक्त आती थीं और फिर 5 साल के लिए गायब हो जाती थीं. दलित समाज के बड़े नेता होने बावजूद यहां दलित बस्तियों की हालत बद से बदतर है. ना सड़के सही हैं और ना ही कोई बड़ा अस्पताल है.