विरोधी दल आरोप लगाते हैं कि भाजपा से जो भी दल जुड़ा, वो स्वाहा हो गया. विरोधी दल यूं ही नहीं आरोप लगाते हैं. अब यह भाजपा की रणनीति है या उन दलों के समय का चक्र, भाजपा के साथ आने और जाने के साथ ही उन दलों का भविष्य चौपट हो जाता है. आज मंगलवार को हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के परिणामों से भी स्पष्ट हो रहा है. जम्मू कश्मीर में पी​डीपी एक समय भाजपा के साथ आई थी और जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनी थीं. आज जब नतीजे आए तो पीडीपी की बर्बादी सभी देख रहे हैं. उसी तरह, 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में जननायक जनता पार्टी को 10 सीटें हासिल हुई थीं और नतीजा यह हुआ कि भाजपा बहुमत पाने से चूक गई थी. जननायक जनता पार्टी ने भाजपा को समर्थन दिया था और कुछ महीने पहले तक साथ रही थी, लेकिन फिर भाजपा से अलग होकर चुनाव मैदान में उतरी और इस बार के चुनाव में वह भी अपनी बर्बादी देख रही है. ये केवल 2 दल नहीं हैं. ऐसे कई दलों की फेहरिस्त है, जो भाजपा के साथ आने और जाने में बर्बाद हो गए. ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खूंटा ठोककर खड़े हैं. पिछले 19 साल में कम से कम 17 साल से वे भाजपा के साथ मुख्यमंत्री बने हुए हैं.


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जम्मू कश्मीर और हरियाणा की बात हो गई. अब पंजाब की बात करते हैं. पंजाब में भाजपा ने अकाली दल से दशकों पहले से गठबंधन किया था. कृषि कानूनों के मुद्दे पर अकाली दल ने भाजपा से नाता तोड़ा था और पहले विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव में भी अकाली दल का सूपड़ा साफ हो गया. पहले कांग्रेस और अकाली दल भाजपा गठबंधन जनता की प्राथमिकता में होते थे, लेकिन आम आदमी पार्टी के पंजाब में प्रवेश के साथ ही अकाली दल हाशिये पर चली गई है. 


महाराष्ट्र में शिवसेना भी लंबे समय तक भाजपा के साथ गठबंधन में रही, लेकिन 2019 में उसने मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा से गठबंधन तोड़कर महाविकास अघाड़ी बनाकर कांग्रेस और एनसीपी के साथ चली गई थी. उसके बाद शिवसेना का क्या हाल हुआ, सभी जानते हैं. शिवसेना दो टुकड़ों में बंट गई और नाम और निशान पर एकनाथ शिंदे की पार्टी को चला गया और ठाकरे परिवार ताकता रह गया. जो शिवसेना पहले महाराष्ट्र में भाजपा के लिए बड़ा भाई का रोल निभाती थी, अब वो भाजपा के सामने बहुत छोटी पार्टी बनकर रह गई है.


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अब बात करते हैं कर्नाटक की. वहां जनता दल सेक्यूलर के नेता एचडी कुमारस्वामी 3 फरवरी 2006 को भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे और 9 अक्टूबर 2007 तक ही इस पद पर रह पाए थे. उसके बाद 31 मई 2013 से 22 जनवरी 2014 तक वे इस पद पर रहे. 16 मई 2018 में भी वे तीसरी बार कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे. उसके बाद उनकी पार्टी को बड़ी बगावत का सामना करना पड़ा था. पिछले विधानसभा चुनाव में तो जनता दल सेक्युलर की हालत काफी पतली हो गई थी.


अब बात करते हैं तमिलनाडु की, जहां एआईएडीएमके ने भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी. जयललिता के रहते भाजपा ने एआईएडीएमके के साथ गठबंधन किया था और सरकार में शामिल हुई थी. जयललिता के निधन के बाद भी गठबंधन जारी रहा, लेकिन उसके बाद पार्टी अलग अलग गुटों में बंट गई थी. ओ पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी के नेतृत्व में पार्टी में दो धड़े हो गए थे. इसके अलावा शशिकला पार्टी को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करती थीं. आज एआईएडीएमके की हालत तमिलनाडु में बहुत खराब है और एमके स्टालिन के नेतृत्व में डीएमके वहां राज कर रही है.


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एक समय असम गण परिषद असम की बड़ी पार्टी हुआ करती थी. इसका गठन 1985 के असम एकॉर्ड के बाद 14 अक्टूबर 1985 को हुआ था. प्रफुल्ल कुमार महंत राज्य के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे. असम गण परिषद 1985 से 1989 और 1996 से 2001 के बीच दो बार सरकार बना चुकी है. असम गण परिषद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय से एनडीए का हिस्सा रही और अब भी वह एनडीए का हिस्सा है. सोचिए, दो बार सरकार बनाने वाली असम गण परिषद अब एनडीए का एक छोटा सा घटक दल बनकर रह गई है.


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