Bihar Politics:  बिहार में I.N.D.I.A गठबंधन के घटक दलों की लंबी लिस्ट है लेकिन इससे कई दल बाहर रह गए हैं जो या तो इस छटपटाहट में अभी तक थे कि उन्हें NDA का हिस्सा बना लिया जाएगा. वहीं कई दलों को लग रहा था कि I.N.D.I.A गठबंधन के घटक दलों में उन्हें भी स्थान मिलेगा. लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. ऐसे में बिहार में नीतीश कुमार जिस गठबंधन के साथ आगे बढ़े हैं उसके लिए यही सियासी दल कहीं राह का रोड़ा ना बन जाए. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


बता दें कि यूपी में दलित वोट बैंक पर अपनी ताकत दिखा चुकी मायावती की बसपा(BSP), पप्पू यादव की JAP, तेलंगाना की बीआरएस, बंगाल में सीपीएम, ओड़िशा में बीजेडी, ओवैसी की AIMIM, झारखंड में JMM, अरविंद केजरीवाल की AAP और बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी JDU ऐसे दल हैं जो अपने कभी भी बदल देनेवाले निर्णय की वजह से पहचान पाते हैं. 


वहीं बिहार में एक और दल है नाम है VIP.  मुकेश सहनी इसके मुखिया हैं और वह इस सोच के साथ आगे बढ़े थे कि शायद NDA में उन्हें भाव मिल जाएगा. लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया. ऐसे में इन दलों में कुछ को ना तो NDA में जगह मिल पाई ना ही  I.N.D.I.A गठबंधन. अब ऐसे में इनमें से दोनों ही गठबंधन में जगह नहीं पाने वाले सियासी दल अपना अलग गठबंधन तैयार करने की जुगत में लग गए हैं. 


ये भी पढ़ें- सीट बंटवारे में देरी क्यों, क्या गठबंधन की पार्टियों को और इंतजार कराएगी कांग्रेस?


एनडीए और 'इंडिया' दोनों में से कुछ दल ऐसे भी हैं जो सियासी कारणों से दूसरी पार्टियों के तालमेल को पचा नहीं पा रहे हैं. बिहार में NDA में चिराग पासवान और पशुपति पारस को ही देख लीजिए वहीं दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में ममता दीदी की कांग्रेस के साथ कांग्रेस और सीपीएम साथ आने में हिचक रही है. ऐसे में अब बिहार में महागठबंधन की राह ज्यादा आसान नहीं नडजर आ रही है. 


पप्पू यादव, मुकेश सहनी, मायावती और ओवैसी अपनी-अपनी पार्टियों को साथ लाकर बिहार में एक और अलग गठबंधन बनाकर चुनाव मैदान में उतरने का मन बना रहे हैं. ऐसे में यह होना NDA के लिए संजीवनी से कम नहीं होगा क्योंकि इस तरह का प्रयोग पहले भी यहां इस गठबंधन के लिए फायदेमंद साबित हुआ है. इन दलों के साथ आने से विपक्षी गठबंधन INDIA के वोट बैंक में सेंध लगेगी. पप्पू यादव तो पहले कोशिश कर रहे थे कि उनकी पार्टी को INDIA गठबंधन का हिस्सा बना लिया जाए, वहीं ओवैसी को तो विपक्षी गठबंधन की तरफ से पूछा ही नहीं गया. मायावती पहले से ही इससे अलग नजर आ रही थी. वहीं मुकेश सहनी निषाद आरक्षण की मांग के साथ बिहार की यात्रा पर हैं. ऐसे में अगर यह साथ आ गए तो विपक्षी गठबंधन को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी. 


वहीं इंडिया गठबंधन में भी दिक्कत कम नहीं है. पश्चिम बंगाल में टीएमसी का कांग्रेस और सीपीएम से साथ छत्तीस का आंकड़ा है. टीएमसी यहां कांग्रेस सीपीएम को लॉलीपॉप देकर संतोष कराने के मुड में है जबकि सीपीएम अब बैठक से ही किनारा करने लगी है. वहीं नीतीश कुमार ने भले ही इस पूरे गठबंधन के लिए विपक्षी दलों को इकट्ठा करने में अहम भूमिका निभाई है. लेकिन, वह भी अब थोड़े कटे-कटे से नजर आने लगे हैं. ऐसे में अब बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार क्या करेंगे यह देखना जरूरी है.