Bihar Politics: विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. संतोष मांझी के मुताबिक, सीएम नीतीश कुमार उन पर पार्टी विलय करने का दबाव बना रहे थे. संतोष मांझी ने कहा कि हमारे लिए सरकार से ज्यादा सम्मान जरूरी है. उनके इस बयान पर जेडीयू ने भी पलटवार किया. जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि वो अपनी अलग दुकान चला रहे हैं. यदि उनकी पार्टी को जेडीयू में विलय करने को कहा, तो क्या बुराई है? ललन सिंह ने साफ कर दिया कि अब मांझी की पार्टी महागठबंधन का हिस्सा नहीं है. जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष भले ही इसे हल्के में ले रहे हों, लेकिन इससे नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ सकती है. 


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दरअसल, जीतन राम मांझी के रूप में महागठबंधन के पास इकलौता दलित नेता था. मांझी ने जेडीयू से अलग होकर भले अपनी अलग पार्टी बना ली हो, लेकिन नीतीश कुमार उन्हें अपनी पार्टी के नेता के रूप में ही पेश करते थे. यही वजह थी कि नीतीश जब भी दलित बाहुल्य इलाकों का दौरा करने जाते थे तो संतोष मांझी को साथ लेकर जाते थे. प्रदेश में दलितों की आबादी 16-18 फीसदी है. जीतन राम मांझी और चिराग पासवान इस समाज के बड़े नेता हैं. 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को चिराग पासवान अपनी ताकत दिखा चुके हैं. चिराग के कारण ही जेडीयू की सीटें इतनी कम हो गई थीं. मांझी के जाने के बाद अब नीतीश कुमार को दलित वोटबैंक को मैनेज करना बड़ी चुनौती साबित होगी. 


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संतोष मांझी के डैमेज कंट्रोल करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सहरसा के सोनबरसा सीट से विधायक रत्नेश सदा को मैदान में उतारा है. मांझी की तरह रत्नेश सदा भी मुसहर समाज से आते हैं. इसी कारण संतोष मांझी के इस्तीफे के बाद आनन-फानन में रत्नेश सदा को मुख्यमंत्री आवास पर बुलाया गया था. अब शायद उन्हें संतोष मांझी की जगह मंत्री भी बनाया जा सकता है. ये ठीक उसी तरह से हो रहा है जैसा हम उपेंद्र कुशवाहा के मामले में देख चुके हैं. उपेंद्र कुशवाहा के डैमेज को कंट्रोल करने के लिए उमेश कुशवाहा को जेडीयू का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था.


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वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस को इससे फायदा हो सकता है. कांग्रेस काफी लंबे समय से दो मंत्रीपद की मांग कर रही थी. अब उनकी मांग को पूरी किया जा सकता है. महागठबंधन की सरकार बनते समय कांग्रेस ने ये मांग रखी थी, लेकिन वो पूरी नहीं हो सकी थी. इसके अलावा महागठबंधन में अब पार्टियों की भीड़ कम हो जाएगी, जिससे लोकसभा सीटों को बांटने में आसानी होगी. महागठबंधन में जीतन राम मांझी लगातार 5 सीटों की मांग कर रहे थे. यदि उनकी बात मानी जाती तो इसका नुकसान कांग्रेस और लेफ्ट को होता, जबकि अब मांझी के हिस्से की सीटें इन दोनों पार्टियों को मिल सकती हैं.