Sushil Modi Passes Away: बिहार की सियासत में 'जय-वीरू' कही जाने वाली जोड़ी अब हमेशा के लिए बिखर गई है. दरअसल, बिहार भाजपा के दिग्गज नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का सोमवार (13 मई) की शाम दिल्ली एम्स में निधन हो गया. वह पिछले कई महीनों से कैंसर से पीड़ित थे. बिहार के सियासी गलियारो में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की दोस्ती के काफी चर्चे होते थे. लेकिन अब इसकी सिर्फ यादें बचीं. सुशील मोदी के निधन से दो जिगरी यार अब कभी नहीं मिल सकते. सुशील मोदी का निधन बिहार भाजपा के लिए ही नहीं बल्कि समूचे बिहार के लिए दुखद खबर है. उनके निधन पर पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार सहित राजद अध्यक्ष लालू यादव ने भी शोक जताया है. 


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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सुशील मोदी के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है. मुख्यमंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा कि स्व. सुशील कुमार मोदी जेपी आंदोलन के सच्चे सिपाही थे. उपमुख्यमंत्री के तौर पर भी उन्होंने हमारे साथ काफी वक्त तक काम किया. मेरा उनके साथ व्यक्तिगत संबंध था और उनके निधन से मैं मर्माहत हूं. मैंने आज सच्चा दोस्त और कर्मठ राजनेता खो दिया है. बता दें कि दो दोस्तों के बीच कैंसर विलेन बनकर आ गया. सुशील मोदी ने कुछ समय पहले ही कैंसर से पीड़ित होने की जानकारी दी थी और अब इस बीमारी की वजह से उनका निधन हो गया.


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नीतीश कुमार और सुशील मोदी दोनों छात्र जीवन से ही एक-दूसरे से परिचित थे. दोनों ने जेपी आंदोलन से सक्रिय राजनीति में एंट्री की थी. आपातकाल के वक्त दोनों कई बार साथ में जेल भी गए थे. यहीं से दोनों एक-दूसरे पर भरोसा करने लगे. राजनीतिक माहौल में भी यह रिश्ता बना रहा. 2005 में जब बिहार में एनडीए को बहुमत मिला तो नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली तो वहीं बीजेपी की ओर से सुशील मोदी को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया. 2020 से पहले जब भी नीतीश कुमार बीजेपी के साथ बिहार की सत्ता में थे, सुशील मोदी उनके जूनियर पार्टनर की भूमिका में थे.


दोनों के बीच आपसी समझ इतनी जबरदस्त थी कि बीजेपी पार्टी में ही कुछ लोगों को ये अखरने लगी. बिहार बीजेपी के नेता दिल्ली आलाकमान के कान भरने लगे और सुशील मोदी पर बीजेपी को बी टीम बनाकर रखने के आरोप लगने लगे. यही वजह है कि 2020 में एनडीए को बहुमत मिलने पर सुशील मोदी को डिप्टी सीएम की कुर्सी नहीं मिली. इस कारण से नीतीश कुमार का मन भी कुछ ही दिनों में भाजपा से खिन्न हो गया और उन्होंने 2022 में महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बना ली. नीतीश कुमार ने भाजपा नेताओं पर उनकी पार्टी तोड़ने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. 


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नीतीश कुमार ने कहा था कि मैं मुख्यमंत्री बनना ही नहीं चाहता था, अगर सुशील मोदी होते तो आज यह हालात नहीं होते. जेडीयू के नेता भी मानते हैं कि सुशील मोदी और नीतीश कुमार के बीच मजबूत संबंध रहे. जेडीयू नेताओं के मुताबिक, नीतीश कुमार केवल सुशील मोदी के लिए सीएम पद छोड़ने को तैयार थे. हालांकि, गठबंधन टूटने के बाद दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर खूब शब्दों के बाण चलाए. ये कुदरत का चमत्कार कहें कि 17 महीने बाद नीतीश कुमार का फिर से हृदय परिवर्तन हुआ और वह महागठबंधन छोड़कर वापस एनडीए में लौट आए. इस तरह से आखिरी वक्त में दोनों दोस्त साथ रहे.