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पटना:Sushil Modi: भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी अगर राजनीति में न आते तो पत्रकार बनते. यह बात उन्होंने खुद कबूली थी. बिहार की राजनीति में पहले भाजपा की ओर से विधायक दल के नेता, डिप्टी सीएम और जीएसटी एम्पावर्ड कमेटी के चेयरमैन की भूमिका उन्होंने निभाई थी. आज देश में जीएसटी लागू है तो उसका बहुत बड़ा श्रेय सुशील कुमार मोदी को जाता है. सुशील कुमार मोदी इसी साल की शुरुआत में राज्यसभा से रिटायर हुए थे. बीमारी को देखते हुए उन्होंने खुद ही पार्टी से कोई पद न देने का अनुरोध किया था, जिसे पार्टी ने स्वीकार कर लिया था. पिछले दिनों भाजपा के कई बड़े नेता उनसे मिल चुके हैं. राज्यसभा से रिटायर होने के बाद सुशील कुमार मोदी ने कहा था, देश में बहुत कम कार्यकर्ता होंगे, जिनको पार्टी ने 33 साल तक देश के चारों सदनों में भेजने का काम किया. मैं पार्टी का सदैव आभारी रहूंगा और पहले की तरह कार्य करता रहूंगा. बता दें कि सुशील कुमार मोदी चारा घोटाले में याचिकाकर्ता भी रह चुके थे.
बिहार में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ जनमत बनाने में भी सुशील कुमार मोदी का अहम योगदान रहा. भले ही उसका फल सुशील कुमार मोदी को न मिला, लेकिन नीतीश कुमार अगर आज तक बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं तो इसमें सुशील कुमार मोदी का बड़ा योगदान रहा. हालांकि उन पर यह भी आरोप लगा कि वे नीतीश कुमार की बी टीम के रूप में काम करते रहे और भाजपा लीडरशिप का बिहार में उभार नहीं हुआ.
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के अलावा सुशील कुमार मोदी भी जेपी आंदोलन की ही उपज रहे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे सुशील कुमार मोदी की छात्र राजनीति की शुरुआत 1971 में हुई थी. सुशील कुमार मोदी को दक्षिणपंथ का उदार चेहरा माना जाता था, लेकिन 90 के दशक में उनके संबोधनों में भी आक्रामकता साफ देखी जा सकती थी. सुशील कुमार मोदी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में भी महत्वपूर्ण पदों पर काम करते रहे.
1990 में पटना केंद्रीय विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर सुशील कुमार मोदी विधानसभा पहुंचे. 2004 में वे भागलपुर से लोकसभा का चुनाव जीते. वहीं 2005 में संसद की सदस्यता से इस्तीफा देकर वे विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए और बिहार के डिप्टी सीएम बने थे. नीतीश कुमार तब मुख्यमंत्री बने थे. 2013 तक यह जोड़ी लगातार काम करती रही थी. तब बिहार में भाजपा जूनियर और नीतीश कुमार की पार्टी सीनियर पार्टनर हुआ करती थी. 2005 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज 55 तो नीतीश कुमार की पार्टी को 88 सीटें हासिल हुई थीं.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सुशील कुमार मोदी, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया की तरह ही वाजपेयी और आडवाणी के जमाने के बड़े नेता थे. वे नरेंद्र मोदी के समकालीन और आज के गृह मंत्री अमित शाह से भी सीनियर थे. 2020 में जब उन्हें बिहार का डिप्टी सीएम पद न दिया गया तो उसके बाद उन्हें रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई सीट से राज्यसभा भेजा गया था. इसी साल की शुरुआत में वे राज्यसभा से रिटायर हुए थे.