पटना: Bihar Politics: सब कुछ वैसा ही चल रहा था, जैसा कि विपक्षी दल भाजपा पर 'ऑपरेशन लोटस' चलाने का आरोप लगाते रहते हैं. कल्पना कीजिए, अगर यह ऑपरेशन सफल हो जाता तो नीतीश कुमार की राजनीतिक हैसियत क्या रह जाती. इंडिया ब्लॉक का संयोजक या पीएम पद के लिए चेहरा तो छोड़िए, वे गठबंधन में रहने लायक भी अपनी पार्टी को नहीं बचा पाते. नीतीश कुमार को उस बागी को इनाम देना चाहिए, जिसने सारा भांडा फोड़ दिया और नीतीश कुमार की न केवल लाज रख ली, बल्कि जेडीयू के अस्तित्व को ही खत्म होने से बचा लिया. बागी का एक फोन कॉल और फिर ललन सिंह की सारी प्लानिंग ध्वस्त. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ये भी पढ़ें- क्या जेडीयू तोड़ने और नीतीश कुमार के सर्वनाश की स्क्रिप्ट लिख रहे थे ललन सिंह?


मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ललन सिंह को जिस पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था, उसी पार्टी को वे तोड़ने का प्लान बनाए हुए थे. मकसद था मनोज झा की जगह राज्यसभा में अगले 6 साल के स्थायी सीट पाना. इस प्लान में राजद का बैकअप था तो एक्जीक्यूशन की सारी जिम्मेदारी ललन सिंह की थी. प्लान में नीतीश कुमार की सरकार में शामिल वरिष्ठ मंत्री को भी शामिल कर लिया गया था. पटना में गुप्त मीटिंग भी हुई पर इसी मीटिंग के बाद इसमें शामिल एक बागी ने नीतीश कुमार को पूरी सूचना दे दी. सोचिए, नीतीश कुमार के तो होश फाख्ता हो गए होंगे. 


एक अध्यक्ष भला अपनी ही पार्टी क्यों तोड़ने जा रहा था, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि मुंगेर संसदीय सीट पर इस बार अमित शाह की व्यूह रचना के चलते वे चुनाव नहीं जीत पाएंगे. उसी अमित शाह के व्यूह रचना से, जिनसे लोकसभा में दिल्ली पुनर्गठन बिल पर ललन सिंह ने दो दो हाथ कर लिए थे. अमित शाह ने कुछ माह पहले मुंगेर संसदीय क्षेत्र में एक बड़ी रैली को संबोधित भी किया था. 


एक पार्टी का अध्यक्ष अपनी पार्टी केवल इसलिए भी तोड़ रहा था, क्योंकि उन्हें दूसरी पार्टी के एक नेता को मुख्यमंत्री बनाना था. वह भी इसलिए, क्योंकि उस नेता के परिवार से उनका संबंध प्रगाढ़ हो गया था. नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी का अध्यक्ष बना दिया, उसका कुछ नहीं लेकिन अगर किसी ने दुलार और पुचकार दिया और राज्यसभा भेजने का लालच दे दिया तो बाकी सभी को धता बता दिया गया और अपने दुर्भावना वाले उद्देश्यों की पूर्ति में सर्वस्व झोंक दिया गया.


राजद नेता और सांसद मनोज झा को भी नीतीश कुमार और उस बागी का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसने उनकी खत्म हो रही राज्यसभा सांसदी बचाने में बड़ी भूमिका अदा कर दी. अगर यह प्लान कामयाब हो जाता तो मनोज झा दोबारा राज्यसभा नहीं जा पाते और उनकी जगह ललन सिंह राज्यसभा में अगले 6 साल के लिए बैठे रहते.