पीएम मोदी के करीबी को बिहार में मिली अहम जिम्मेदारी, जानें क्या है प्लान!
लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में भाजपा की तरफ से जिस तरह की तैयारी की जा रही है उसने विरोधियों की नींद उड़ा दी है. एक तरफ भाजपा के बड़े नेताओं की पूरी फौज बिहार पर फेकस की हुई है. लगातार बिहार के दौरे पर भाजपा के वरिष्ठ नेता जा रहे हैं और लोगों से संवाद स्थापित कर रहे हैं.
पटना : लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में भाजपा की तरफ से जिस तरह की तैयारी की जा रही है उसने विरोधियों की नींद उड़ा दी है. एक तरफ भाजपा के बड़े नेताओं की पूरी फौज बिहार पर फेकस की हुई है. लगातार बिहार के दौरे पर भाजपा के वरिष्ठ नेता जा रहे हैं और लोगों से संवाद स्थापित कर रहे हैं. वहीं गृहमंत्री अमित शाह 6 महीने के अंदर चौथी बार बिहार जानेवाले हैं तो दूसरी तरफ जेपी नड्डा ने कुछ महीने पहले ही बिहार का दौरा किया था.
आपको बता दें कि राजद, कांग्रेस और जदयू को मात देने के लिए बिहार में भाजपा की तरफ से 'सम्राट' कार्ड खेला गया है. 2024 के चुनाव से पहले भाजपा ने बिहार भाजपा की कमान सम्राट चौधरी के हाथ में सौंप दी है. वहीं अब भाजपा की तरफ से एक और ब्रह्मास्त्र बिहार के लिए छोड़ा गया है. दरअसल नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी माने जानेवाले सुनील ओझा को पार्टी ने बिहार में सह प्रभारी नियुक्त किया है.
जेपी नड्डा की तरफ से सुनील ओझा को बिहार भाजपा का सह प्रभारी नियुक्त किया गया है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ही इसकी घोषणा भी की है. आपको बता दें कि सुनील ओझा गुजरात के रहनेवाले हैं. ऐसे में सम्राट चौधरी के बाद बिहार भाजपा के संगठन में एक और बदलाव ने पार्टी की सोच को साफ कर दिया है. भाजपा किसी भी कीमत पर बिहार में अपनी मजबूती को बरकरार रखने और अपनी जमीनी ताकत को और बढ़ाने के मुड में नजर आ रही है.
सुनील ओझा यूपी के सह प्रभारी थे. ऐसे में बिहार भाजपा के प्रभारी विनोद तावड़े के साथ मिलकर अब सुनील ओझा वहां प्रदेश में काम करेंगे क्योंकि तत्काल उनके मनोनयन को प्रभावी रूप दे दिया गया है. सुनील ओझा पीएम मोदी के कितने करीबी हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह वाराणसी में पएम मोदी के संसदीय क्षेत्र का काम संभालते रहे हैं. वह गुजरात में भावनगर से विधायक भी रह चुके हैं.
मिर्जापुर में बन रहे गढ़ौली आश्रम की वजह से सुनील ओझा चर्चा में आए थे. लोग इसे ही ओझा का यूपी से बिहार में ट्रांसफर की वजह बता रहे हैं. ऐसे में अब बिहार में सुनील ओझा के प्लान का भाजपा को कितना फायदा मिलेगा यह तो चुनाव के वक्त ही पता चलेगा.