प्रशांत किशोर, CM नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा की यात्रा और अमित शाह की रैली, आखिर चंपारण की ओर क्यों खींचे आ रहे राजनेता?
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने बीते साल 2 अक्टूबर 2022 को बिहार में चंपारण की धरती से जनसुराज यात्रा (Jansuraj Yatra) का आगाज किया. इस यात्रा के दौरान वे 3500 किलोमीटर की यात्रा करेंगे और खास बात यह है कि यात्रा खत्म किए बिना वे पटना से दिल्ली नहीं जाएंगे.
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने बीते साल 2 अक्टूबर 2022 को बिहार में चंपारण की धरती से जनसुराज यात्रा (Jansuraj Yatra) का आगाज किया. इस यात्रा के दौरान वे 3500 किलोमीटर की यात्रा करेंगे और खास बात यह है कि यात्रा खत्म किए बिना वे पटना से दिल्ली नहीं जाएंगे. प्रशांत किशोर के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar Samadhan Yatra) समाधान यात्रा पर निकले और उन्होंने भी यात्रा के आगाज के लिए चंपारण की धरती ही चुनी. अब नीतीश कुमार से मनमुटाव के बाद राष्ट्रीय लोक जनता दल (RLJD) नाम से नई पार्टी बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha New Political Party) भी चंपारण की धरती से अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत करने जा रहे हैं. उनकी यात्रा 28 फरवरी से शुरू होने जा रही है. वहीं 25 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah Valmikinagar Rally) भी चंपारण की धरती वाल्मीकिनगर में बड़़ी रैली करने वाले हैं. आने वाले दिनों में राहुल गांधी भी भारत जोड़ो पार्ट टू (Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra Part 2) का आगाज करने वाले हैं तो हो सकता है कि बिहार में वे भी चंपारण की धरती को चूमकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करें. आखिर चंपारण की धरती में ऐसा क्या खास है कि हर राजनीतिक यात्रा का आगाज यही से होता है और आखिर क्यों सभी राजनीतिक दल चंपारण की धरती को अपने लिए मुफीद मान रहे हैं?
चंपारण की धरती का ऐतिहासिक महत्व
दरअसल, चंपारण की धरती से भारत की आजादी के आंदोलन को लेकर एक गौरवगाथा जुड़ी हुई है. महात्मा गांधी ने अपने पहले राजनीतिक आंदोलन का आगाज इसी धरती से किया था. दिसंबर 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में महात्मा गांधी की मुलाकात चंपारण के लाल पंडित राजकुमार शुक्ल से हुई. इस मुलाकात ने महात्मा गांधी की राजनीति की दिशा बदलकर रख दी थी. पंडित राजकुमार शुक्ल ने चंपारण में किसानों की पीड़ा को महात्मा गांधी के सामने बयां किया और बताया कि कैसे अंग्रेज उन किसानों का शोषण कर रहे हैं. शुरुआत में तो महात्मा गांधी ने पंडित शुक्ल का अनुरोध ठुकरा दिया लेकिन पंडित शुक्ल के बार—बार कहने पर आखिरकार महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह के रूप में अपना पहला आंदोलन शुरू किया और इसमें उन्हें सफलता भी मिली. इसी आंदोलन के बाद मोहनदास करमचंद गांधी के नाम के साथ महात्मा की उपाधि जुड़ गई. चंपारण सत्याग्रह की ही देन थी कि देश को डा राजेंद्र प्रसाद, आचार्य जेबी कृपालानी, मजहरूल हक और ब्रजकिशोर प्रसाद जैसी हस्तियां मिलीं.
राजनीतिक रूप से चंपारण में किसका होल्ड?
भौगोलिक रूप से चंपारण दो हिस्सों में विभाजित है- पहला पूर्वी चंपारण तो दूसरा पश्चिमी चंपारण. हालांकि दोनों जिलों में कुल 3 लोकसभा सीटें हैं और 2019 के चुनाव में ये सभी तीन सीटें बीजेपी ने जीती थीं. विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो पश्चिमी चंपारण में 9 सीटें हैं- वाल्मीकिनगर, बेतिया, लौरिया, रामनगर, नरकटियागंज, बगहा, नौतन, चनपटिया और सिकटा. इनमें से 7 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है और एक सीट पर जेडीयू तो एक सीट सीपीआई एमएल के हिस्से में गई है. इसी तरह पूर्वी चंपारण में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 12 है- रक्सौल, सुगौली, नरकटिया, हरसिद्धि, गोबिंदगंज, केसरिया, कल्याणपुर, पिपरा, मोतिहारी, मधुबन, चिरैया और ढाका. इन 12 में से 8 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है तो राजद के पास केवल 3 सीट है. एक सीट जेडीयू के हिस्से में गई है. कुल मिलाकर देखा जाए तो चंपारण में विधानसभा की 21 सीटें हैं, जिनमें से 15 पर बीजेपी काबिज है और लोकसभा की भी सभी तीन सीटें उसके पास है. 21 में से केवल 3 सीट राजद के पास, 2 जेडीयू के पास और एक सीट सीपीआई एमएल के पास है. चंपारण ही वह धरती है जो थोक में बीजेपी को विधायक और सांसद चुनकर भेज रही है. इसी को ध्यान में रखकर सभी राजनीतिक यात्राएं चंपारण की धरती से शुरू की जा रही हैं.
भारत जोड़ो यात्रा पार्ट 2 भी चंपारण से गुजरेगी!
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का पहला चरण खत्म हो चुका है और जल्द ही दूसरा चरण शुरू होने वाला है. पहला चरण दक्षिण से उत्तर की ओर था तो दूसरा चरण पश्चिम से पूरब या पूरब से पश्चिम की ओर हो सकता है. इस चरण में बिहार से भी यात्रा गुजरेगी, ऐसा माना जा रहा है. जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा बिहार आएगी, तब उनके रणनीतिकारों को भी चंपारण की धरती का ऐतिहासिक महत्व पता होगा और वे भी चंपारण से यात्रा गुजारने के बारे में सोचेंगे. वैसे भी कांग्रेस महात्मा गांधी की राजनीतिक विरासत का स्वाभाविक उत्तराधिकारी खुद को मानती है तो महात्मा गांधी के पहले आंदोलन की धरती को कैसे नजरंदाज कर सकती है. स्वाभाविक सी बात है कि भारत जोड़ो यात्रा पार्ट टू चंपारण की धरती से जरूर गुजरेगा. यह अलग सवाल है कि चंपारण की धरती से यात्रा शुरू करने का लाभ किसको मिलता है. क्या उपेंद्र कुशवाहा, क्या नीतीश कुमार या फिर क्या प्रशांत किशोर को इसका लाभ मिलेगा? या पीएम मोदी और अमित शाह इसका फायदा उठा ले जाएंगे? पिक्चर अभी बाकी है.