प्रशांत किशोर... अलग टाइप के राजनीतिज्ञ. अभी शुरुआत है. तुरंत ही झुंझला जाते हैं, लेकिन सोमवार को जो कुछ भी हुआ, उससे लगता है कि प्रशांत किशोर राजनीति में खासतौर से बिहार की राजनीति में लंबी रेस के घोड़ा साबित होने वाले हैं. कंबल और वैनिटी वैन विवाद की कालिख को प्रशांत किशोर ने सोमवार को एक तरह से धो दिया. जमानत की शर्तें मानने के बजाय जेल जाने के फैसले के बाद प्रशांत किशोर ने एक ऐसी लकीर खींच दी है, जिससे युवा वर्ग के बीच उनकी अलहदा छवि प्रस्तुत हुई होगी. और जेल से आने के बाद सोमवार की शाम को प्रशांत किशोर ने जो अल्फाज प्रस्तुत किए, उससे सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को चिंतित होने की जरूरत है. सत्ता से संघर्ष कैसे करते हैं, तेजस्वी यादव को खासतौर से प्रशांत किशोर से सीख लेना चाहिए. सोमवार को जिस तरह से घटनाक्रम बदलते चले गए, उससे तो कई बारगी लगा कि पटना पुलिस प्रशांत किशोर को हीरो बनाने में मदद कर रही थी. हालांकि अगर हम ऐसा कहते हैं तो इसका मतलब यह है कि हम प्रशांत किशोर के जज्बे को कमतर आंक रहे हैं. 


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बेउर जेल से निकलने के बाद शाम को प्रशांत किशोर ने जब माइक संभाली तो पूरे रौ में थे. वे बोलते चले जा रहे थे. चेहरे पर आत्मविश्वास इस कदर कि गिरफ्तार होने के बाद भी बोले, आंदोलन जहां से शुरू हुआ था, वहीं निबटाया जाएगा. गांधी मैदान से शुरू हुआ था और गांधी मैदान में ही निबटाया जाएगा. 


नीतीश कुमार की सरकार के अलावा प्रशांत किशोर ने भाजपा को भी कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की. पीके ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा युवाओं की बात करते हैं लेकिन पटना में 2 बार लाठीचार्ज होने के बाद भी वे एक बार भी इस बारे में नहीं बोले. प्रशांत किशोर ने ऐलान किया कि यह नीतीश कुमार की जिद बनाम बिहार के युवाओं की जिद वाली लड़ाई है और इसमें जीत युवाओं की होने वाली है.


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दलगत राजनीति से आगे बढ़कर प्रशांत किशोर ने भाकपा माले की तारीफ की और कहा कि अगर इस आंदोलन में किसी एक पार्टी ने साथ दिया है तो वो है भाकपा माले. तेजस्वी यादव और राहुल गांधी से प्रशांत किशोर ने युवाओं की खातिर सड़क पर उतरने की अपील की और कहा कि मैं उनदोनों को पूरा सहयोग दूंगा अगर वे ऐसा करते हैं. प्रशांत किशोर ने यह भी कहा कि यह एक ​व्यक्ति का आंदोलन नहीं है.


अपनी राजनीति के शैशवकाल में इस तरह की परिपक्वता दिल्ली में अरविंद केजरीवाल दिखा चुके हैं. हालांकि दिल्ली के अन्ना आंदोलन और लोकपाल आंदोलन की तुलना प्रशांत किशोर के आंदोलन की तुलना नहीं की जा सकती. फिर भी जमानत की शर्तों को ठुकराना और जेल जाने के लिए तैयार होना एक अपील पैदा करता है. प्रशांत किशोर की राजनीतिक टाइमिंग को देखें तो उनका उदय ऐसे समय में हो रहा है, जब बिहार की राजनीति के दो बड़े धुरंधर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार अब अंतिम पारी खेल रहे हैं.


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नई पीढ़ी की पॉलिटिक्स भी परंपरागत अंदाज में ही होती दिख रही है. तेजस्वी यादव और चिराग पासवान के अलावा सम्राट चौधरी भी युवा नेता हैं पर प्रशांत किशोर जैसा जिगरा इन तीनों में से कोई भी अब तक नहीं दिखा सका है. भाजपा तो अब तक बिहार में एक चेहरा ठीक से नहीं दे पाई है. दूसरी ओर, प्रशांत किशोर, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव दोनों के कार्यकाल को टारगेट में रखे हुए हैं और भरोसे की नई उम्मीद जगा रहे हैं. दूसरी ओर, अब तक नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव के जंगलराज की दुहाई देकर ही सत्ता में बने हुए हैं. भाजपा भी नीतीश कुमार की हां में हां मिलाती रहती है.


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