Bihar Politics: PK की जन सुराज ने बिना कोई तामझाम पाए 66 हजार से ज्यादा वोट, समझें क्यों RJD-JDU के लिए खतरे की घंटी?
Bihar Politics: इस उपचुनाव को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहा जा रहा है, लिहाजा एनडीए और महागठबंधन ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. जन सुराज की कोई बड़ी रैली नहीं हुई. पीके की जन सुराज यात्रा की दम पर ही उनकी पार्टी यह प्रदर्शन करने में सफल हुई.
Prashant Kishor Politics: बिहार की चार विधानसभा सीटों- तरारी, रामगढ़, बेलागंज, इमामगंज पर हुए उपचुनाव में एनडीए ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया. इंडिया ब्लॉक की तीन सीटों पर एनडीए का कब्जा हो गया. इस चुनाव में प्रशांत किशोर की नई-नवेली पार्टी जन सुराज पर सभी की निगाहें टिकी हुई थीं. पीके की पार्टी का यह पहला चुनाव था, जिसमें वह कोई सफलता हासिल नहीं कर सकी. पीके के तीन कैंडिडेट तीसरे स्थान पर रहे, जबकि रामगढ़ सीट पर जन सुराज के उम्मीदवार को चौथा स्थान मिला. आंकड़ों के लिहाज से ये प्रदर्शन भले ही शर्मनाक हो, लेकिन वोटों के हिसाब से जन सुराज ने जेडीयू और आरजेडी दोनों को टेंशन में डाल दिया है.
दरअसल, इस उपचुनाव को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहा जा रहा है, लिहाजा एनडीए और महागठबंधन ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. अंत में सीएम नीतीश कुमार ने एक बार फिर से तेजस्वी यादव को चारो खाने चित्त कर दिए. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि एनडीए की इस जीत में जन सुराज का बड़ा हाथ रहा. चुनाव से करीब एक महीने पहले बनी जनसुराज पार्टी को न केवल 10 फीसदी वोट मिले, बल्कि राजद को उसके दो अभेद्य किलों में बेदम करने में भी इसका बड़ा योगदान रहा.
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इमामगंज सीट पर जन सुराज के उम्मीदवार जितेंद्र पासवान को 37 हजार 103 वोट मिले. बेलागंज में जन सुराज के मोहम्मद अमजद 17 हजार 285 वोट पाने में सफल रहे. तरारी सीट पर जन सुराज की किरण सिंह को 5622 और रामगढ़ में सुशील कुमार सिंह को 6513 वोट मिले. सभी के वोट मिला देने पर कुल वोट का योग 66 हजार 523 पहुंचता है. लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे क्षत्रपों की मौजूदगी में डेब्यू मैच में ही यह स्कोर खराब भी नहीं है. चिराग पासवान की अगुवाई वाली एलजेपी ने 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में करीब 6 फीसदी वोट हासिल किए थे.
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जीतनराम मांझी की पार्टी का कोर वोटर ही 3 फीसदी है. मुकेश सहनी भी सिर्फ 4 फीसदी वोटबैंक की राजनीति करते हैं. ऐसे में पीके की पार्टी का 10 फीसदी वोट शेयर ले जाना, जेडीयू और आरजेडी के लिए खतरे की घंटी है. खास बात ये है कि जन सुराज के सियासी दल बनने का ऐलान 2 अक्तूबर को ही हुआ था. पार्टी अभी अपनी रूपरेखा ही तैयार कर रही थी कि उपचुनाव का ऐलान हो गया. ऐसे में पीके की पार्टी ने बिना संगठन के यह चुनाव लड़ा. दूसरी ओर सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी महागठबंधन की ओर से स्टार प्रचारकों की टीम प्रचार के मोर्चे पर सक्रिय नजर आई, तो वहीं जन सुराज की कोई बड़ी रैली नहीं हुई. पीके ने जो जन सुराज यात्रा कर रखी थी, उसी की दम पर पार्टी यह प्रदर्शन करने में सफल हुई.
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