शराबबंदी खत्म करने का ऐलान कर प्रशांत किशोर ने कर दी बड़ी गलती! जिस पर डाल रहे डोरे वहीं नाराज
Prashant Kishor Jan Suraaj Party: आगामी विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने ऐलान किया था कि हर एक लोकसभा क्षेत्र में कम से कम एक महिला को चुनाव मैदान में उतारेंगे. इस तरह से 40 लोकसभा क्षेत्रों में कम से कम 40 महिलाएं चुनाव मैदान में होंगी. इसे मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा था पर शराबबंदी खत्म करने के ऐलान से महिलाओं में नाराजगी बढ़ी है.
Prashant Kishor Strategy: प्रशांत किशोर ने पटना के वेटरनरी कॉलेज ग्राउंड पर बड़ा जलसा किया और इसकी चहुंओर चर्चा हुई, लेकिन उन्होंने जाने अनजाने एक गलती कर दी. गांधी जयंती के दिन शराबबंदी खत्म करने का ऐलान कर डाला. अब इसका व्यापक तरीके से विरोध हो रहा है. चाहे जेडीयू हो या फिर राजद या फिर कांग्रेस हो या भाजपा, सभी दल प्रशांत किशोर के इस कदम को गलत ठहरा रहे हैं. एक तथ्य यह भी निकलकर आया कि प्रशांत किशोर महिलाओं को 40 विधानसभा क्षेत्रों में टिकट देकर लुभाने की कोशिश कर रहे थे, वहीं महिलाएं शराबबंदी खत्म होने के प्रशांत किशोर के ऐलान से क्षुब्ध हैं. महिलाओं को लुभाने का प्रशांत किशोर का मकसद जेडीयू के वोटरों का एक बड़ा वर्ग अपने पाले में करना था, लेकिन अब वो बैकफायर करता नजर आ रहा है. प्रशांत किशोर की अग्निपरीक्षा यही से शुरू होती है.
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सबसे पहले शराबबंदी के असर की बात कर लेते हैं. द लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथ ईस्ट एशिया जर्नल की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में शराबबंदी के बाद से 18 लाख पुरुषों को अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त होने से बच गए हैं. इसके अलावा, रिपोर्ट बताती है कि शराबबंदी के बाद बिहार में महिलाओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा में 4.6 प्रतिशत और यौन हिंसा में 3.6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.
इस रिपोर्ट से जाहिर है कि बिहार में शराबबंदी से कोई और फायदा हो न हो, महिलाओं के खिलाफ हिंसा में व्यापक पैमाने पर कमी दर्ज की गई है. शराबबंदी की कितनी भी आलोचना कर ली जाए, लेकिन समाज के लिए यह उल्लेखनीय कदम के रूप में याद किया जाएगा. और सबसे बड़ी बात यह कि 20,000 करोड़ का राजस्व ज्यादा जरूरी है कि महिलाओं की अस्मिता और उनके खिलाफ हिंसा में कमी लाना महत्वपूर्ण है. जाहिर सी बात है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कमी ज्यादा जरूरी है.
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अब सोचिए, जिन महिलाओं को शराबबंदी से सबसे ज्यादा फायदा हुआ है या हो रहा है, वो महिलाएं क्या बिना शराबबंदी के बिहार को स्वीकार कर पाएंगी या फिर क्या किसी ऐसी कोशिश को अपना समर्थन देंगी. इसका जवाब ना में होगा. प्रशांत किशोर यही गलती कर गए. 40 सीटों पर महिला प्रत्याशी उतारने के एवज में वे शराबबंदी कानून खत्म करने की पैरवी कर रहे हैं, लेकिन वे शायद यह बात भूल रहे हैं कि वे शराबबंदी कानून खत्म करने की बात ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में आई कमी को उभार देना चाहते हैं. शराबबंदी हटी तो जाहिर सी बात है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी होगी. क्या प्रशांत किशोर इसे अपना समर्थन देंगे.
आप शराबबंदी की आलोचना कर लीजिए. इसके नफे नुकसान पर चर्चा कर लीजिए, लेकिन क्या यह सच नहीं है कि बिहार में शराब पीने से पहले आदमी सौ बार सोचता है. कहीं से जुगाड़ करके बोतल मिल भी जाए तो पीने की जगह के बारे में आदमी दिमाग लगाता है. पीते वक्त भी धुकधुकी लगी रहती है कि कहीं पुलिस को पता न चल जाए और वह पकड़ा न जाए. क्या पहले की तरह कोई भी खुलेआम शराब पी सकता है. जवाब नहीं में आएगा. यह सही है कि शराबबंदी लागू करने के बाद भी कई जगहों पर शराब पकड़ी जा रही है. तस्करी एक फायदे का व्यापार बन गया है लेकिन यह शराबबंदी हटाने का कोई कारण नहीं हो सकता.
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1 अप्रैल, 2016 से बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद 2022 तक 5 लाख से ज्यादा केस दर्ज किए गए हैं. एक्साइज डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने आंकड़े जारी कर बताए हैं कि रोजाना औसतन 800 लोगों को शराबबंदी कानून में पकड़ा जाता है. 2022 के आंकड़े के अनुसार, बीते डेढ़ साल में 1400 लोगों को एक से ज्यादा बाद शराब पीने के आरोप में पकड़ा गया है. 2016 से 2022 तक शराबबंदी कानून के तहत बिहार पुलिस ने करीब 4 लाख तो आबकारी विभाग ने डेढ़ लाख केस दर्ज किए गए हैं और साढ़े 6 लाख लोग पकड़े गए हैं. इन अवधि में अवैध शराब के धंधे में लिप्त एक लाख गाड़ियां भी जब्त की गई हैं.