Lok Sabha Election 2024: नीतीश कुमार इन दिनों दिल्ली में हैं और विपक्षी एकजुटता की मुहिम को नए सिरे से रंग देने में लगे हैं. इस कड़ी में उन्होंने बुधवार (12 अप्रैल) को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की. जिसके बाद कांग्रेस की ओर से नीतीश को यूपीए का संयोजक बनाने की तैयारी चल रही है. माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने वही दांव चला है, जो दशकों पहले बीजेपी के दिवंगत नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने चला था. 


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दरअसल, 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज 13 दिन में ही गिर गई थी. इस घटना से वाजपेयी ये तो समझ गए थे कि बिना गठबंधन के अकेले कांग्रेस से मुकाबला नहीं किया जा सकता है. बीजेपी की कट्टर हिंदुत्ववाली छवि के चलते कोई भी दल उसके साथ नहीं आना चाहता था. इस लिहाज से बीजेपी राजनीतिक रूप से अछूत मानी जाती थी. 1998 में बीजेपी को समता दल के अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडिस का साथ मिला. 


जॉर्ज फर्नांडिस ने NDA का विस्तार किया


वाजपेयी ने खुद आगे ना आकर उन्हें NDA का संयोजक नियुक्त कर दिया. जॉर्ज फर्नांडिस ने देशभर के क्षेत्रीय दलों को NDA से जोड़ने की पहल की. इसका नतीजा अगले ही साल यानी 1999 में हुए आमचुनाव में देखने को मिला. 1999 में 24 दलों के साथ एनडीए की ना सिर्फ सरकार बनी, बल्कि पूरे 5 साल चली भी. जॉर्ज फर्नांडिस के बाद शरद यादव भी लंबे समय तक इस भूमिका में रहे. इसी दौर में बिहार में भी एनडीए को कामयाबी मिली और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया.  


रिपीट हो रहे 1998 वाले समीकरण


देश की राजनीति में एक बार फिर से 1998 वाले समीकरण दोहराते हुए नजर आ रहे हैं. 2014 के बाद से कांग्रेस की हालत बेहद खराब हो चुकी है. राहुल गांधी ने काफी मेहनत की, लेकिन वह पार्टी का गिरता जनाधार नहीं संभाल पाए. सोनिया गांधी के नेतृत्व में यूपीए पिछले 9 साल से बाहर है. डूबते जहाज पर कोई भी सवारी नहीं करना चाहता, लिहाजा तीसरे मोर्चे के गठन के संकेत मिल रहे थे. 


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कितना कामयाब होंगे नीतीश कुमार?


अब यदि नीतीश कुमार को यूपीए का संयोजक बनाया जाता है. तो गैर बीजेपी और गैर-कांग्रेसी दल भी साथ आ सकते हैं. हालांकि अब देखना होगा कि क्या नीतीश कुमार अपने राजनीतिक गुरू जॉर्ज फर्नांडिज की तरह कितना सफल हो पाते हैं? क्या वह ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, केसीआर और एमके स्टालिन जैसे नेताओं को अपने साथ जोड़ सकते हैं?