Shyam Rajak Polotical Power: बिहार विधानसभा चुनाव अगले साल होने हैं, लेकिन दल-बदल का सिलसिला अभी से शुरू हो चुका है. इसी कड़ी में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के करीबी रहे कद्दावर नेता श्याम रजक ने राष्ट्रीय जनता दल से इस्तीफा दे दिया है. बिहार की राजनीति में चार दशक से सक्रिय श्याम रजक ने राजद से रिश्ता तोड़ते समय एक बड़ा संदेश भी दिया है. श्याम रजक ने अपने पोस्ट में लिखा- 'मैं शतरंज का शौकीन नहीं था, इसीलिए धोखा खा गया. आप मोहरे चलते रहे और मैं रिश्तेदारी निभाता गया.' श्याम रजक का यह इस्तीफा राजद के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. अब सियासी गलियारों में उनके जाने से होने वाले फायदे-नुकसान की चर्चा चल रही है.


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बता दें कि लालू यादव ने जब राजद की स्थापना की थी, तो उनके साथ राम-श्याम की जोड़ी ने भी खूब मेहनत की थी. इनमें से राम यानी रामकृपाल यादव पहले ही राजद छोड़कर बीजेपी के साथ आ गए थे. अब श्याम रजक ने भी राजद से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, श्याम रजक ने पहली बार 2009 में राजद छोड़कर जदयू ज्वाइन की थी. लेकिन 2020 में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले फिर से राजद में वापसी कर ली थी. लालू ने उन्हें राजद का राष्ट्रीय महासचिव बनाया था. इस पद पर रहकर भी वह पार्टी में खुद को हाशिए पर पा रहे थे.


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बिहार की राजनीति में जातीय फैक्टर हमेशा से हावी रहा है. श्याम रजक का इस्तीफा उस समय आया है, जब आरक्षण की बात नए सिरे से जोर पकड़ रही है. जातीय गणना में उनकी (श्याम रजक) जाति की संख्या केवल 15 लाख बताई गई. रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में हिंदू धोबियों की संख्या 10 लाख 96 हजार 158 है तो मुस्लिम धोबियों की संख्या 4 लाख 9 हजार 796 है. दोनों को मिलाने से यह संख्या 15 लाख 5 हजार 954 होती है. श्याम रजक की जाति की संख्या भले ही ज्यादा ना हो, लेकिन उनकी वजह से दलित समाज का एक बड़ा तबका राजद को वोट करता है. 


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बिहार में फुलवारी शरीफ और पटना के आसपास के दलित समुदाय पर श्याम रजक की पकड़ मजबूत है. धोबी समुदाय के नेता के तौर पर पूरे बिहार में उनकी अच्छी-खासी पहचान है. वे जिस भी खेमे में रहेंगे, उसे अपने दम पर कुछ लाभ अवश्य पहुंचा सकते हैं. वहीं श्याम रजक से पहले वृषिण पटेल, पूर्व सांसद अशफाक करीम, पूर्व डीजीपी करुणा सागर और रामा सिंह राजद छोड़ चुके हैं. अगर यह सिलसिला इसी तरह से चलता रहा तो राजद को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. कहा जा रहा है कि जिस तरह से यूपी में समाजवादी पार्टी से गैर यादव ओबीसी वोटर अलग हो गया, वही हाल राजद का ना हो जाए. हालांकि, सपा ने इस लोकसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की है.


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