Opposition Unity: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेस्ट फ्रेंड में शामिल आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम और टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर से बीजेपी से दोस्ती करना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने ने शनिवार (3 जून) को बीजेपी के चुनावी चाणक्य अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी. कहा जा रहा है कि नायडू की एनडीए में वापसी की डील सेट हो चुकी है और जल्द ही इसकी आधिकारिक घोषणा भी कर दी जाएगी.  


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चंद्रबाबू नायडू शनिवार (3 जून) की रात को 8 बजे अमित शाह के घर पहुंचे थे. दोनों की बातचीत चल ही रही थी कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी वहां पहुंच गए थे. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, नायडू ने शाह और नड्डा के साथ आने वाले लोकसभा चुनाव के अलाव विधानसभा चुनावों पर चर्चा की. जानकारी के मुताबिक, नायडू ने न केवल आंध्र बल्कि तेलंगाना में होने वाले विधानसभा चुनाव भी मिलकर लड़ने पर चर्चा की है. जानकारी के मुताबिक, यदि दोनों के बीच गठबंधन हुआ तो आंध्र प्रदेश में TDP तो तेलंगाना में बीजेपी बड़े भूमिका में दिखाई देगी. 


टीडीपी से बीजेपी को फायदा या नुकसान?


अब सवाल ये उठता है कि क्या चंद्रबाबू नायडू के साथ आने से बीजेपी की ताकत में इजाफा होगा या फिर उसे नुकसान उठाना पड़ेगा. दरअसल, टीडीपी का साथ छूटने के बाद से आंध्र प्रदेश में बीजेपी अकेले है. हालांकि, मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी के साथ पीएम मोदी के संबंध अच्छे नजर आए. संसद में मोदी सरकार जब भी फंसती नजर आई, उसे सत्ताधारी पार्टी YSR कांग्रेस पार्टी का समर्थन मिला. अब यदि बीजेपी फिर से टीडीपी के साथ दोस्ती करती है, तो उसे जगन मोहन रेड्डी का समर्थन मिलना बंद हो जाएगा. वहीं कर्नाटक गंवाने के बाद दक्षिण में बीजेपी को फिर से अपने पैर जमाना बहुत जरूरी हो गया है. पार्टी अपने बलबूते पर ऐसा शायद ही कर पाए इसलिए उसे किसी के साथ गठबंधन की सख्त दरकरार है.


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पहले भी NDA का हिस्सा थे चंद्रबाबू नायडू


बता दें कि चंद्रबाबू नायडू पहले भी एनडीए के साथ रह चुके हैं. उन्होंने 2014 का चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था लेकिन 2018 में दोनों के रिश्ते खराब हो गए और TDP का बीजेपी से तलाक हो गया था. जो काम आज नीतीश कुमार कर रहे हैं 2019 में वही काम चंद्रबाबू नायडू कर रहे थे. उन्होंने कोलकाता में मोदी विरोधियों को एक मंच पर लाकर खड़ा किया था. विपक्ष में शामिल सभी नेता एक-दूसरे का हाथ थामे दिखाई दिए थे. हालांकि, ये एकजुटता ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकी थी. विपक्षी नेताओं की व्यक्तिगत आकांक्षाएं विपक्षी एकजुटता पर हावी पड़ गई और चुनाव आते-आते ये एकता ताश के पत्तों की तरह बिखर गई थी. वहीं मोदी विरोध में पूरी तरह से लुटने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने भी सरेंडर कर दिया था और बीजेपी से रिश्ते सुधारने की कोशिश में लग गए थे.