ये लगातार दूसरा साल है, जब दिसंबर महीने में बिहार की राजनीति एकदम से उबाल मार रही है. पिछले साल का कारण कुछ और था और इस बार का कारण कुछ और है. पिछले साल भी कयास नीतीश कुमार को लेकर लगाए जा रहे थे और इस बार भी कयास के केंद्र में नीतीश कुमार ही हैं. नीतीश कुमार की राजनीति है ही कुछ ऐसी कि विश्लेषक भी राजनीति विज्ञान की किताब खोलकर पन्ने पलटने लगते होंगे कि इस तरह की पॉलिटिक्स किस अध्याय में प्रकाशित हुई है. नीतीश कुमार लोगों को एकदम चकरघिन्नी बना देते हैं अपनी राजनीति से. लालू प्रसाद यादव जैसे घाघ राजनीतिज्ञ के पास भी नीतीश कुमार की राजनीति का कोई तोड़ नहीं है तो आप समझ सकते हैं कि उनकी राजनीति का स्तर क्या है.


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खैर, बिहार की राजनीति या इससे जुड़ी कुछ घटनाओं की कड़ियों को मिलाएं तो कयासबाजी का आधार और आकार बड़ा होने लगता है, लेकिन इसे गठबंधन राजनीति के नजरिए से देखें तो कोई बड़ी बात नजर नहीं आती. आज हम उन बातों का जिक्र करेंगे, जो बुलबुले से बबल बनने की ओर बढ़ता चला जा रहा है. जो दिख रहा है वो भले ही सामान्य लग रहा है, लेकिन ये किसी बड़े तूफान से पहले की चुप्पी के संकेत भी हो सकते हैं. इनको परखने और समझने के लिए कुछ घटनाओं पर नजर डालते हैं. 


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा के लिए राज्य कैबिनेट ने पैसे का प्रस्ताव पास किया और तारीख 15 दिसंबर तय की. इस बीच तेजस्वी यादव ने फ्री बिजली और माई ​बहिन योजना का ऐलान कर दिया और वादा किया कि सत्ता में आने पर ये सब लागू किए जाएंगे. अचानक खबर आती है कि नीतीश कुमार की यात्रा टल गई है. यात्रा की अगली तारीख आती, उससे पहले दो अहम घटनाएं घटीं. दोनों के केंद्र में अमित शाह रहे.


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पहली घटना हुई संविधान दिवस पर संसद में चली चर्चा के जवाब में राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने बाबा साहब डॉ. भीम राव आंबेडकर को लेकर कुछ ऐसा कहा, जो विपक्ष को नागवार गुजरा और पूरे देश में राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया. दूसरी घटना हुई एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में नेतृत्व के सवाल पर अमित शाह ने चुनाव परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री तय करने की बात कह दी. 


दूसरी घटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सीधा जुड़ाव था. लिहाजा एक दिन खबर आई कि नीतीश कुमार बीमार हैं और वे उस दिन किसी कार्यक्रम में शिरकत नहीं करेंगे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार बिजनेस कनेक्ट 2024 में एमओयू साइन करने के दौरान भी मौजूद नहीं थे. ये बात शुक्रवार की है और उसके बाद सोमवार को नीतीश कुमार यात्रा पर निकले. 


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पश्चिम चंपारण से यात्रा की शुरुआत करने के दौरान या उसके बाद मुख्यमंत्री ने मीडिया से कोई बात नहीं की. अगले दिन मोतिहारी पहुंचे, तब भी चुप रहे. अटल जयंती पर सब बोले, लेकिन नीतीश नहीं बोले. जबकि ऐसी कोई यात्रा इतने साल में नहीं हुई जब नीतीश कुमार कुछ न बोले हों.


नीतीश की ये चुप्पी खल रही है. इस चुप्पी के बीच दो घटना और हो गईं. राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को हटा दिया गया और आरिफ़ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया. इसके अलावा डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने अटल जी की जन्मशती के मौके पर यह कह दिया कि अपना सीएम बनाने तक सच्ची श्रद्धांजलि नहीं होगी. 


इन दोनों घटनाओं के बीच तीसरी और चौथी घटना भी हुई, जिसने नीतीश की नाराजगी की खबरों को और हवा दी. पटना में अटल जयंती का सरकारी कार्यक्रम था. नीतीश के बगल में सम्राट चौधरी की कुर्सी थी और फिर विजय चौधरी की. नीतीश के दूसरी तरफ की कुर्सी बहुत देर तक खाली रही. विश्लेषकों का कहना है कि इस दौरान सम्राट के चेहरे पर बहुत उत्साह नहीं दिखा.


इस कार्यक्रम के बाद बीजेपी के तमाम नेताओं ने नीतीश की तारीफ की और उन्हें सुशासन का प्रतीक कहा. बेगूसराय में गिरिराज सिंह ने नीतीश के लिए भारत रत्न की मांग कर दी. ये सारी घटनाएं एक दूसरे से जुड़ी है और ये कोई इत्तेफाक की बात नहीं है कि नीतीश कुमार की इस यात्रा में केवल विजय चौधरी दिख रहे हैं. 


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उधर, तेजस्वी यादव का आरोप है कि नीतीश कुमार के करीबियों को भाजपा ने हाइजैक कर लिया है. तेजस्वी यादव कहते हैं कि इसमें से दो दिल्ली चले गए और दो बिहार में हैं. संजय झा, ललन सिंह दिल्ली में हैं तो अशोक चौधरी और विजय चौधरी पटना में. इन नेताओं की भाजपा से करीबियां जाहिर सी बात हैं. 


ऐसे में अब जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर नीतीश कुमार कोई फैसला लेते हैं तो फिर उसका असर सिर्फ पटना तक नहीं होगा. दिल्ली में बैठी सरकार भी प्रभावित होगी. हालांकि ये सिर्फ कड़ियां जोड़ने वाली बात है. दिसंबर का महीना है. नीतीश कुमार के अध्यक्ष बने कल शनिवार को एक साल हो जाएंगे. ठंड के महीनों में बिहार की राजनीति उबाल मारती है लेकिन जरूरी नहीं कि हर बुलबुला समंदर में तूफान ही ला दे. कयासबाजी चल रही है और यह चलती रहेगी.


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