JDU Meeting: नीतीश कुमार जब से बिहार में मुख्यमंत्री बने तब से एक चीज साफ देखने को मिली जीतन राम मांझी के कार्यकाल को छोड़ दें तो नीतीश कुमार चार बार पलटी मार चुके हैं और चारों बार नीतीश कुमार ही बिहार के सीएम रहे. हालांकि गठबंधन का चेहरा और उनका पूरा मंत्रिमंडल जरूर इस दौरान बदल गया. हालांकि इसमें जो सबसे चौंकाने वाला सत्य रहा वह यह रहा की नीतीश कुमार ने जब-जब पार्टी की कमान अपने हाथ में ली वह भाजपा के करीब नजर आए. उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और केंद्र से भी उनकी नजदिकियां बढ़ी. 


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सबसे पहले यह देख लें कि नीतीश कुमार ने कब-कब और कैसे-कैसे हालात में पलटी मारी. नीतीश कुमार ने सबसे पहले 2013 में जब NDA के पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर गुजरात के तत्कालिन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का ऐलान किया तो अपने को सेक्यूलर बताते हुए नीतीश कुमार ने NDA का साथ छोड़ दिया और फिर क्या था नीतीश कुमार की पार्टी लोकसभा चुनाव 2014 में नरेंद्र मोदी और NDA के खिलाफ मैदान में उतर आई. फिर चुनाव में हार के बाद नैतिकता के आधार पर नीतीश ने इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को बिहार की सत्ता पर काबिज करा दिया. हालांकि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जीतन राम मांझी को उन्होंने सत्ता छोड़ने को कहा लेकिन भाजपा ने मांझी का समर्थन कर दिया और जदयू के कुछ विधायक जीतन राम मांझी के साथ आ गए. सरकार बच गई और फिर 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार कांग्रेस और राजद के साथ मिलकर NDA के खिलाफ चुनाव लड़े और सरकार बनाने में कामयाब हो गए. सरकार 2017 तक चली और फिर नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में विपक्ष के सियासी हल्लाबोल के बाद साथ छोड़ दिया और तब भी भाजपा के सहयोग से वह सीएम पद पर काबिज रहे. 


अब समय आया 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव का नीतीश कुमार NDA के साथ चुनाव लड़े सरकार बनाया और फिर 2022 में मई का महीना था जब उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ महागठबंधन का दामन थामा और अपनी सरकार बचा ली. इसके बाद से बिहार में वह महागठबंधन की सरकार चला रहे हैं. अब जो मूल मुद्दा है उस पर ध्यान आकर्षित कराते हैं. दरअसल 2013 में जब भाजपा से नीतीश ने अलग होने का फैसला किया तो उस समय शरद यादव जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. वहीं आपको बता दें कि जब 2016 में नीतीश कुमार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो 2017 में नीतीश ने महागठबंधन से नाता तोड़कर फिर भाजपा के साथ जाना सही समझा. इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को बनाया गया जबकि नीतीश कुमार को 2022 तक इस पद पर रहना था लेकिन काम का लोड़ अधिक होने की वजह से यह पद सिंह के हिस्से आया. 


फिर जेडीयू केंद्र में शामिल हुई और आरसीपी सिंह मंत्री बन गए तो ऐसे में ललन सिंह 2021 में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. इसके बाद नीतीश की राजद के साथ नजदीकी बढ़नी शुरू हुई और फिर 2022 में नीतीश ने महागठबंधन का दामन थाम लिया और सरकार उसके सहारे ही चल निकली. अब जब कहा जा रहा है कि ललन सिंह का इस्तीफा लगभग तय है और नीतीश कुमार एक बार फिर से पार्टी की कमान अपने हाथ में ले सकते हैं तो सियासी गलियारों में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि नीतीश कुमार एक बार फिर से अपनी पार्टी को NDA का हिस्सा बना सकते हैं. पिछले कुछ सियासी हालातों को देखें तो इसका कुछ अंदाजा लगने भी लगा है. इंडिया गठबंधन में चार बैठकों के बाद नीतीश के हाथ कुछ नहीं आया है. वहीं बिहार में भी सत्ता और खासकर महागठबंधन के साथ सत्ता चलाने में वह ज्यादा सहज महसूस नहीं कर रहे हैं.