Giriraj Singh Hindu Swabhiman Yatra: मोदी सरकार के मंत्री हिंदू स्वाभिमान यात्रा पर निकल गए हैं और इससे बिहार की राजनीति गर्म हो गई है. पप्पू यादव ने पूर्णिया में यात्रा को उनकी लाश पर से गुजरने की धमकी दे डाली है तो जेडीयू, राजद, कांग्रेस आदि द​लों ने गिरिराज सिंह की यात्रा को पाखंड करार दिया है. जेडीयू के गुलाम रसूल बलियावी ने तो गिरिराज सिंह को बुजदिल तक करार दिया है. यहां तक कि खुद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने गिरिराज सिंह की यात्रा से किनारा कर लिया है. उनका कहना है कि गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा से भाजपा का कोई लेना देना नहीं है. दिलीप जायसवाल ने कहा कि यह भाजपा की यात्रा नहीं है. हम नफरत के नाम पर सियासत नहीं करते. दिलीप जायसवाल ने तो यह तक बोल दिया कि हिंदू स्वाभिमान यात्रा से नीतीश कुमार की सेक्युलर इमेज को कोई नुकसान नहीं होने वाला. अब सवाल उठता है कि अगर भाजपा का गिरिराज सिंह की यात्रा से कोई लेना देना नहीं है तो इसके पीछे कौन है? क्या वे बिहार भाजपा में अलग थलग पड़ गए हैं? क्या बिहार भाजपा में उनकी मनमानी चल रही है? अगर आप भी ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत सोच रहे हैं.


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भाजपा ने भले ही आधिकारिक तौर पर गिरिराज सिंह की यात्रा से किनारा कर लिया है, लेकिन आप सोचकर देखिए. क्या मोदी सरकार का मंत्री अपने राज्य में इस तरह की मनमानी कर सकता है? क्या भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में गिरिराज सिंह बेलगाम हो गए हैं? क्या गिरिराज सिंह पर किसी तरह का कोई अंकुश नहीं है? क्या मोदी सरकार का मंत्री इस तरह बेलगाम होकर किसी तरह की यात्रा निकाल सकता है? यात्रा की टाइमिंग भी देखिए. ठीक एक साल बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. एक तरफ तेजस्वी यादव यात्रा का पहला चरण खत्म कर चुके हैं. आरसीपी सिंह लंबी यात्रा निकाल चुके हैं. प्रशांत किशोर की यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है. उपेंद्र कुशवाहा भी यात्रा पर निकले हुए हैं. इन सब यात्राओं के बीच गिरिराज सिंह की यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है. 


तेजस्वी यादव जहां अपने वोटबैंक को एकजुट रखने और आने वाले चुनाव के लिए गोलबंद करने के लिए यात्रा निकाल चुके हैं. आरसीपी सिंह के बारे में खबर है कि वे नई पार्टी बनाने पर विचार कर रहे हैं. प्रशांत किशोर लंबी यात्रा के बाद एक पार्टी बना चुके हैं तो उपेंद्र कुशवाहा भी कुशवाहा समाज को एकजुट करने के लिए यात्रा पर निकले हैं. दूसरी ओर, गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा पर निकलने से किसी को क्या फर्क पड़ता है. बाकी लोग भी यात्रा निकाल रहे हैं और गिरिराज सिंह भी यात्रा निकाल रहे हैं, लेकिन फर्क है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है. गिरिराज सिंह की यात्रा हिंदुओं में जागृति लाने के लिए शुरू की गई है. बस राजनीति गरमाने के लिए यही काफी है.


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अब मुद्दे पर आते हैं. जब भाजपा और एनडीए ने पूर्व प्रधानमंत्री अ​टल बिहारी वाजपेयी के विकल्प के रूप में लालकृष्ण आडवाणी को पीएम पद की उम्मीदवारी दे रहे थे, तब भी गिरिराज सिंह ने विरोध किया था. वे अपनी हर सभा में नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगाते थे और लगवाते भी थी. तब नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मन में जहर भरा हुआ था. नीतीश कुमार ने भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं के लिए डिनर इसलिए कैंसिल कर दिया था कि उसमें नरेंद्र मोदी को शामिल होना था. गुजरात की तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार ने बिहार में बाढ़ की विपदा से निपटने के लिए जो राहत सामग्री भेजी थी, नीतीश कुमार ने उसे भी लौटा दिया था. नीतीश कुमार को उम्मीद थी कि मुसलमान वोट लालू प्रसाद यादव को छोड़कर उन्हें मिल जाएगा. 2015 से पहले ऐसा हुआ भी. 


2014 में मोदी सरकार बनी और गिरिराज सिंह को मंत्री पद का ओहदा मिला. आज भी वे मंत्री हैं. नरेंद्र मोदी अगर लगातार तीसरे टर्म में प्रधानमंत्री बने हैं तो गिरिराज सिंह उन चंद नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें लगातार तीसरे टर्म में भी मंत्री बनाया गया है. उनकी उपलब्धियों और बिहार के लिए किए गए कार्यों पर अलग से बहस की जा सकती है, लेकिन राजनीतिक रूप से गिरिराज सिंह ने खुद को प्रासंगिक बनाए रखा है और आडवाणी युग में भी नरेंद्र मोदी के प्रति वफादारी का इनाम वो उठाते आ रहे हैं. अब सोचिए कि इतना बड़ा फैसला क्या वे खुद के दम पर ले सकते हैं और भाजपा यह बर्दाश्त कर सकती है?


वैसे तो हाथी के दांत दिखाने और खाने के अलग अलग होते हैं, उसी तरह राजनीति में भी कहा जाता है कुछ और किया जाता है कुछ और. जिस तरह से लोकसभा चुनाव में भाजपा के हिंदुत्व के अभियान को धक्का लगा और वह बहुमत से चूकते हुए सहयोगी दलों के भरोसे सरकार में आई, उससे उसे ​एक बार फिर अपने एजेंडे पर लौटने को मजबूर कर दिया है. हरियाणा विधानसभा चुनाव से भाजपा को एक बूस्ट मिला है और वह इसे लगातार भुनाने की कोशिश करेगी, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए. जेडीयू नेता भले ही कुछ भी कहें, लेकिन खांटी राजनीतिज्ञ क्या नीतीश कुमार क्या यह सब नहीं समझते. वो सब समझते हैं.


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हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कटिहार दौरे पर थे और उन्होंने हिंदू स्वाभिमान यात्रा को लेकर तो कुछ नहीं कहा. हां, मुसलमानों के लिए किए गए कार्यों को उन्होंने जरूर गिनाया. दरअसल, गिरिराज सिंह की भले ही बिहार की राजनीति में आलोचना हो रही है, लेकिन उनकी यात्रा से जितना फायदा भाजपा को होगा, उतना ही जेडीयू को भी. आज की तारीख में जब लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव खुलकर मुसलमानों का साथ दे रहे हैं तो ऐसी उम्मीद कम है कि मुसलमानों का वोट नीतीश कुमार को मिलेगा. इन सब बातों से इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि गिरिराज सिंह अलग थलग नहीं पड़े हैं. भाजपा दोबारा से हाथ आए हिंदुत्व के मुद्दे को हाथ से नहीं जाने देना चाहती और इसके लिए गिरिराज सिंह को मैदान में उतारा गया है. 


अब आप कहेंगे कि गिरिराज सिंह ही क्यों? गिरिराज सिंह इसलिए, क्योंकि बिहार भाजपा में हिन्दुत्व के मुद्दे को धार देने के लिए उनसे बड़ा नेता कोई हो ही नहीं सकता. गिरिराज सिंह दिन रात हिन्दुत्व, हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, इस्लाम, हिंसा, दंगा, जम्मू कश्मीर, इजरायल फिलिस्तीन लेबनान हिज्बुल्ला आदि विषयों पर बिंदास होकर अपनी राय रखते आ रहे हैं. मीडिया में भी ऐसे मसलों पर गिरिराज सिंह की बाइट लेने की होड़ सी मची रहती है. बिहार भाजपा में और कोई भी नेता इस मामले में कम से कम गिरिराज सिंह के समकक्ष नहीं टिकता है. इसलिए गिरिराज सिंह हिन्दू स्वाभिमान यात्रा पर निकल पड़े हैं.


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