नीतीश को भाजपा से अलग होते ही क्यों पसंद आए आनंद मोहन? आखिर कैसा होगा वोट बैंक का गणित
आनंद मोहन 1994 में IAS जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे थे. अभी उनके बेटे की सगाई और शादी का कार्यक्रम है. सगाई से पहले ही वह पैरोल पर जेल से बाहर आए थे और बेटे चेतन आनंद की सगाई के दिन ही उनकी रिहाई का आदेश भी आ गया.
पटना: बिहार सरकार के द्वारा लोकसेवक कानून में बदलाव के बाद इसका सीधा लाभ आनंद मोहन को मिला है. जेल में सजा काट रहे आनंद मोहन को रिहाई मिली है. आपको बता दें कि इसको लेकर बिहार में सियासत उबाल पर है. अनंद मोहन के साथ इस कानून की वजह से 26 और लोगों की जेल से रिहाई का रास्ता खुला है. ऐसे में इसको लेकर राज्य के विधि आयोग की तरफ से आदेश जारी होने के बाद गुरुवार 27 अप्रैल को बाहुबली आनंद मोहन को जेल से रिहाई मिल गई है.
आनंद मोहन 1994 में IAS जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे थे. अभी उनके बेटे की सगाई और शादी का कार्यक्रम है. सगाई से पहले ही वह पैरोल पर जेल से बाहर आए थे और बेटे चेतन आनंद की सगाई के दिन ही उनकी रिहाई का आदेश भी आ गया. आनंद मोहन को इसके बाद जेल की औपचारिकता पूरा करने के लिए वापस सहरसा के जेल में जाना पड़ा और वहां से गुरुवार की सुबह उनकी रिहाई हो गई.
अब इस मामले पर सियासत गर्म हो गई है. बता दें कि सियासी हलकों में यह माना जा रहा है कि राजपूत वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए नीतीश कुमार ने यह हथकंडा अपनाया है. सियासी जानकार मान रहे हैं कि तेजस्वी यादव के दबाव में नीतीश कुमार ने कारा नीति में बदलाव कर आनंद मोहन के हक में यह फैसला तय किया है. बिहार सरकार के इस फैसले का केवल सियासी विरोध नहीं हो रहा बल्कि IAS एसोसिएशन भी सरकार के इस फैसले की आलोचना कर रही है.
भाजपा के राज्यसभा सांसद और पूर्व उप मुख्यमंत्री बिहार सुशील कुमार मोदी ने भी आनंद मोहन की रिहाई पर नीतीश सरकार पर जमकर हमला बोला है. उन्होंने कहा कि आनंद मोहन को बहाने बिहार के 26 और दुर्दांत अपराधियों की रिहाई कर दी गई जो प्रदेश के लिए बेहद खतरनाक है. सियासी दल नीतीश सरकार के इस फैसले को प्रदेश में MY समीकरण को साधने सो जोड़कर देख रहे हैं.
सियासी दलों के द्वारा यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि नीतीश कुमार के भाजपा से अलग होते ही आनंद मोहन उनके इतने चहेते कैसे हो गए. ऐसे में बिहार की राजनीति को नजदीक से देखने वाले राजनीतिक जानकार मानते हैं कि आनंद मोहन के विधायक बेटे चेतन आनंद राजद के ही टिकट पर जीते हैं. वहीं एक समय में आनंद मोहन राजपूत और ब्राह्मण युवकों के हीरो रह चुके हैं. ऐसे में महागठबंधन के सियासी दलों को राजपूत वोट बैंक का सहारा मिल सकता है. इसके साथ ही यह भी माना जा रहा है आनंद मोहन को लोकसभा चुनाव में कहीं महागठबंधन की तरफ से प्रत्याशी भी बनाया जा सकता है.
आनंद मोहन का राजनीतिक करियर भी काफी अजीबोगरीब रहा है. वह 1990 में जनता दल से महिषी विधानसभा से जीते. फिर वह चंद्रशेखर की पार्टी सजपा में शामिल हो गए. हालांकि 1993 में उन्होंने बिहार पीपुल्स पार्टी के नाम से अपनी पार्टी का गठन कर लिया. 1994 में उनकी पत्नी लवली आनंद वैशाली से जीतकर संसद पहुंच गईं. आनंद मोहन ने इसके बाद अपनी पार्टी का समता पार्टी में विलय कर दिया. जेल सी आनंद मोहन दो बार शिवहर सीट से 1996 और 1998 में संसद का चुनाव जीत गए.
बता दें कि प्रदेश में राजपूत की आबादी 30-35 विधानसभा सीटों पर हार जीत का फैसला करती है. राजपूत वोट बैंक बिहार में 6 से 8 फीसद के बीच है. ऐसे में नीतीश कुमार इस जाति के वोट बैंक को महागठबंधन के पाले में करने की कोशिश के तहत यह फैसला ले चुके हैं. बता दें कि इस जाति के वोट बैंक का क्या असर होगा इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि जहां राजद की तरफ से अभी भी जगदानंद सिंह प्रदेश अध्यक्ष हैं वहीं जदयू ने लंबे समय तक वशिष्ठ नारायण सिंह को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा था. सब दलों को पता है कि यह वोट बैंक किसी एक सियासी दल के साथ जुड़ा नहीं है, ऐसे में इसे इकट्ठा करने का यही तरीका था. भाजपा ने भी आरके सिंह को इसी वोट बैंक की वजह से केंद्रीय मंत्री बना रखा था.
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भाजपा को पता है कि प्रदेश में सवर्ण वोट बैंक ही उसकी नैया को पार लगानेवाले हैं यह बिहार में भाजपा की राजनीति में दिखता भी है. भाजपा प्रदेश के 16 प्रतिशत सवर्ण उम्मीदवारों को लुभाने के लिए लगातार बड़ी संख्या में सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट देती रही है. वहीं भाजपा के सबसे वफादार वोटरों में अभी भूमिहार भी हैं. ऐसे में भाजपा भी इन तीन जातियों के सहारे ही बिहार की सियासत को साधने की कोशिश में लगी रहती है.
बिहार में इस समय जो महागठबंधन है उसकी वजह से 34 प्रतिशत प्रदेश के वोट बैंक पर इस गठबंधन की पकड़ है यह मुस्लिम-यादव और कुर्मी वोट बैंक है. अगर इसमें यह 6 से 8 फीसदी राजपूत वोट बैंक जुड़ जाए तो महागठबंधन को 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सोचे 40 में 36 के लक्ष्य से रोकने में मदद मिलेगी. ऐसे में आनंद मोहन महागठबंधन के लिए संजीवनी साबित होंगे.
हालांकि भाजपा भी सवर्णों के साथ अन्य पिछड़ी जातियों और दलित जातियों को वोट बैंक को साधने के लिए फूलप्रूफ प्लान बना रही है. अगर वह उसमें कामयाब हो गई तो 2024 के चुनाव में दोनों तरफ से मुकाबला कांटे का होगा.