रांची: झारखंड में 2019 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद हुकूमत गंवाने वाली भारतीय जनता पार्टी राज्य के सत्ता समीकरणों में उलटफेर करने की कोशिशों में जुटी है. हाल के महीनों में बीजेपी की तेज सियासी चालों ने राज्य में पिछले ढाई सालों से चल रही झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस एवं राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन सरकार की गांठें ढीली कर दी हैं. कहा तो यह भी जा रहा है कि महाराष्ट्र के बाद भाजपा के ऑपरेशन कमल का अगला पड़ाव झारखंड ही है. 


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भाजपा ने झारखंड की मौजूदा सरकार का रुख मोड़ने के लिए कभी 'फुंफकार' तो कभी 'पुचकार' की रणनीति अख्तियार की है. एक तरफ कभी जांच एजेंसियों के खौफ और अदालती दांव-पेंच से राज्य सरकार के मुखिया के लिए डर पैदा करने की कोशिश हो रही है तो दूसरी तरफ दोस्ताना के प्रस्ताव भी बढ़ाये जा रहे हैं. भाजपा की कोशिशें एक हद तक रंग भी लाती दिख रही हैं. पिछले 20-25 दिनों में झामुमो और भाजपा के बीच एक सॉफ्ट रिलेशनशिप विकसित हुई है, जबकि इसके पहले दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर जबर्दस्त तरीके से हमलावर थीं. इस बदलाव को ऑपरेशन कमल की रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है.


राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीते 27 जून को दिल्ली जाकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. बंद कमरे में एक घंटे की बातचीत के बाद जब हेमंत सोरेन रांची लौटे, तभी से भाजपा और झामुमो के बीच की पुरानी तल्खियां गायब है. अब राष्ट्रपति चुनाव में झामुमो ने भाजपा (एनडीए) की ओर से प्रत्याशी बनायी गयीं द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का एलान कर दिया है. हैरानी की बात यह कि यूपीए सहित विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करने के लिए जो बैठक बुलायी थी, उसमें झामुमो के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे. 


झामुमो के सुप्रीमो शिबू सोरेन का कहना है कि द्रौपदी मुर्मू के रूप में देश में पहली बार महिला आदिवासी को राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल होने जा रहा है, इसलिए पार्टी ने उनके समर्थन का फैसला लिया है. झामुमो का यह फैसला कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. इसके पहले बीते महीने हुए राज्यसभा चुनाव में भी झामुमो ने एक सीट पर कांग्रेस की 'मजबूत दावेदारी' को खारिज करते हुए अपना प्रत्याशी उतार दिया था. जाहिर है, दो महीने के भीतर कांग्रेस को झामुमो ने दो तगड़े झटके दिये.


कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं, झामुमो द्वारा एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने से उसके साथ हमारी पार्टी के गठबंधन की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. हमारा गठबंधन राज्य में सरकार चलाने के लिए हुआ था, राष्ट्रपति चुनाव के लिए नहीं. दूसरी तरफ भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी कहते हैं, झामुमो की ओर से एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन का यह फैसला देशहित में है. फैसला झामुमो ने भले देर से लिया है, लेकिन यह सही है.


झामुमो के इतिहास पर नजर डालें तो उसने अहम सियासी फैसले करते हुए हमेशा अपने निजी हितों को ऊपर रखा है. 2012 में जब राष्ट्रपति चुनाव हो रहे थे, तब झारखंड में भाजपा-झामुमो और आजसू गठबंधन की सरकार चल रही थी. उस वक्त झामुमो ने भाजपा समर्थित प्रत्याशी पी.ए. संगमा के बजाय यूपीए प्रत्याशी प्रणव मुखर्जी को समर्थन दिया था. इसके कुछ ही महीनों के बाद झारखंड में झामुमो ने समर्थन वापस लेकर भाजपा की अगुवाई वाली सरकार को गिरा दिया था. फिर कुछ महीनों तक राज्य में लागू रहे राष्ट्रपति शासन के बाद उसने कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनायी थी.


सवाल यह उठ रहा है कि मौजूदा हालात में क्या झामुमो राज्य में कांग्रेस से किनारा कर भाजपा के साथ दोस्ती की राह पकड़ सकता है? चूंकि दोनों की दोस्ताना वाली सत्ता राज्य में पहले भी रह चुकी है तो इस संभावना को असंभव भी नहीं माना जा सकता. हेमंत सोरेन बीते कुछ महीनों से चुनाव आयोग और अदालतों में सामने आये मामलों और राज्य में ईडी की ओर से हो रही कार्रवाई को लेकर असहज हैं. चुनाव आयोग में तो भाजपा ने उनके खिलाफ सीधी शिकायत की है. ऑफिस ऑफ प्राफिट का आरोप लगाते हुए उसने आयोग से हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म करने की मांग की है. 


इस मामले में चुनाव आयोग में सुनवाई का सिलसिला जारी है. अदालत में भी सीएम के खिलाफ दो पीआईएल दाखिल की गयी है, जिसपर हो रही सुनवाई उनके लिए परेशानी बढ़ाने वाली है. इधर ईडी ने मुख्यमंत्री के करीबी और उनके विधानसभा क्षेत्र प्रतिनिधि पंकज मिश्र के खिलाफ हाल में छापेमारियां की हैं. इसके पहले आईएएस पूजा सिंघल और सत्ता में पहुंच रखनेवाले कई लोगों के खिलाफ भी ईडी ने कार्रवाई की थी. कुल मिलाकर घेराबंदी इस तरह है कि झामुमो अब भाजपा सरकार के खिलाफ पहले की तरह आक्रामक नहीं हो सकता. आनेवाले दिनों में इन घटनाक्रमों का असर राज्य में सत्ता समीकरणों पर पड़ना तय माना जा रहा है.


(आईएएनएस)