रांचीः Navratri Rajarppa Mandir:वैसे तो नवरात्र शुरू होते ही देश भर से आये साधकों का जमावड़ा मां छिन्नमस्तिका मंदिर के प्रांगण में लगने लगता है. लेकिन, नवरात्र के नवमी पूजन का विशेष महत्व होता है. आज के दिन साधक माँ छिन्न मस्तिके देवी के मंदिर में सिद्धि प्राप्ति के लिय हवन और यज्ञ करते हैं. दूसरे प्रदेश से आए एक श्रद्धालु ने बताया यह सिद्ध पीठ है. यहां माता जी का धड़ यहां गिरा था. नवरात्र में नौ दिन लोग माँ की पूजा-अर्चना करते हैं. यहाँ तक की ऐसे भक्तों की भी संख्या काफी होती है जो दूर देश से आकर यहाँ मंदिर परिसर में रहकर नौ दिन माँ की आराधना करते हैं. लोगों का मानना है की इस समय सच्चे मन से माँ से जो कुछ माँगा जाय माँ जरूर पूरा करती हैं. देर-सवेर माँ सबकी झोलियाँ भरती हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

6000 साल पुराना है इतिहास
कहा जाता है कि मंदिर 6000 साल पुराना है और देवी छिन्नमस्तिका के लिए जाना जाता है. यहां देवी को प्रेम के देवता कामदेव और प्रेम की देवी रति पर खड़ी नग्न देवी के रूप में दिखाया गया है. मंदिर अपनी तांत्रिक शैली की वास्तुकला के लिए भी मशहूर है. इस मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. छिन्नमस्तिका के कटे हुए सिर को देखकर लोगों के मन में सवाल उठता है कि देवी मां ने अपने कटे हुए सिर को हाथों में क्‍यों उठाया हुआ है, तो इसके पीछे भी एक दिलचस्‍प कहानी है. 


ये भी है लोककथा
एक कहानी के अनुसार, एक बार जब देवी मां अपनी सहेलियों के साथ गंगा नदी में स्‍नान करने गई, तो कुछ समय वहां रुकने के कारण उनकी दो सहेलियां भूख से व्याकुल हो उठी. दोनों सहेलियों की भूख इतनी तेज थी कि दोनों का रंग तक काला पड़ गया. वह मां से भोजन की मांग करने लगीं. मां ने उनसे धैर्य रखने को कहा, लेकिन वह भूख से तड़प रही थीं. माता ने अपनी सहेलियों का हाल देखकर अपना ही सिर काट दिया. जब उन्‍होंने अपना सिर काटा, तो उनका सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा. उसमें से रक्‍त की तीन धाराएं बहने लगीं. दो धाराओं को तो देवी मां ने सहेलियों की तरफ दे दिया और बची हुई धारा से खुद रक्‍त पीने लगीं.


यह भी पढ़िएः Navratri Kanya Pujan: नवमी के दिन कैसे करें कन्या पूजन, जानिए विधि और कथा