पत्थर से तौलकर जनवितरण की दुकान पर मिलता है अनाज
खूंटी के ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे जनवितरण प्रणाली के दूकान हैं, जहां गरीबों के नाम पर सरकार राशन उपलब्ध कराती है और इन अनाजों की कालाबाजारी को रोकने के लिए योजनाएं बनाई गई हैं. लेकिन ये सारी की सारी सरकारी योजनाएं और इसका उद्देश्य धरा का धरा रहा जाता है.
खूंटी : खूंटी के ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे जनवितरण प्रणाली के दूकान हैं, जहां गरीबों के नाम पर सरकार राशन उपलब्ध कराती है और इन अनाजों की कालाबाजारी को रोकने के लिए योजनाएं बनाई गई हैं. लेकिन ये सारी की सारी सरकारी योजनाएं और इसका उद्देश्य धरा का धरा रहा जाता है. दूकानदार इसमें भी भ्रष्टाचार करने की जुगत ढूंढ ही लेते हैं.
टोड़ांगकेल के एक जनवितरण प्रणाली दुकान में पहले इलेक्ट्रॉनिक्स तराजू में पत्थर तोलकर बिल निकाल लेते हैं और बाद में मेनुअल तराजू से अनाज देने का काम करते हैं. ये दूकान है राधा देवी के नाम, राधा देवी के लोग जन वितरण की दुकान चलाते हैं और इंटरनेट की लचर व्यवस्था बताकर दुकान से महज 20 मीटर दूर ले जाकर पत्थर डालकर फिर दुकान के अंदर मैनुअल इलेक्ट्रॉनिक तराजू से गेहूं और चावल तौलकर देते हैं. इसे लेकर कई लोगों ने आपत्ति जताई लेकिन इसका कोई फायदा नहीं है.
राधा देवी का ससुर शिव मुनि साहू ने बताया कि नेट की लचर व्यवस्था के कारण से ऐसा करना होता है. जबकि ग्रामीणों का कहना है कि अगर इनके कहने के अनुसार नेट काम नहीं करता है तो सामान को भी यहीं पर तोलकर के दे पर ऐसा नहीं होता. वृद्ध मायावती देवी ने बताया कि पत्थर ईंट तोलकर फिर दूकान में मेनुअली तौलकर दिए जाने का काम यहां काफी पहले से हो रहा है. सारिदकेल गांव के लखन मुंडा ने बताया कि एक बार पत्थर को अलग जगह ले जाकर तोलते हैं और फिर उसी के बराबर मैनुअल तरीके से तौलकर अनाज यहां देते हैं, यह समस्या हमेशा से होती आई है.
टोड़ांगकेल गांव के बिरसा मुंडा ने कहा कि जो होशियार हैं उन्हें तो अनाज मिल जाता है लेकिन जो अनपढ़ है या बोलने वाला नहीं है तो उसे जैसे-तैसे किसी-किसी को टीना में या किसी को बिना तोले भी दे दिया जाता है. नापतोल करने वाले मुन्ना साव ने बताया कि बगीचा में पहले पत्थरों को तौलकर बिल निकाल लेते हैं. फिर दुकान के अंदर ऐसे ही तौलकर गेहूं और चावल लाभुक को दे देते हैं.
(रिपोर्टर - ब्रजेश कुमार)
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