रांची: Jharkhand Politics: झारखंड की सियासत की अगर बात करें तो क्या भविष्य में सूबे की सियासत आदिवासी - मूलवासी केंदित होने वाली है. राज्य में हाल के दिनों में देखें तो सियासत ने जो राह पकड़ी है, वैसे में झारखंड के सियासी दलों के सामने आदिवासी मूलवासी पॉलिटिक्स को तब्ज्जो देना मजबूरी बनेगी. बदले सियासी हालात में सत्ताधारी दल एक दूसरे से मुकाबले के लिए आदिवासी मूलवासी पॉलिटिक्स को केंदित करेगें.


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विरोधी पार्टियां बैकफुट पर


जेएमएम सांसद महुआ माजी की मानें तो उनकी पार्टी ने राज्य में एक ऐसी लकीर खींच दी है कि कोई भी पॉलिटिकल पार्टी हो उनको वहां के आदिवासी ,मूलवासी स्थानीय लोगों के लिए काम करना ही होगा. उनका कहना है कि विरोधी पार्टियां अब खुद ब खुद बैकफुट पर आ गई है. उनकी सरकार ने तो अपना काम कर दिया. अब 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति हो या ओबीसी को 27%आरक्षण का मामला हो चीजें केंद्र के पाले में है. अगर केंद्र इसे पारित नहीं करती है तो वहां बीजेपी की सरकार है और वो किस मुंह से झारखंड में आकर जनता के सामने खड़ी होगी.


स्थानीयता के पहचान का आधार तय


झारखंड कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा, अब इस राज्य में स्थानीयता के पहचान का आधार तय हो गया है. हमारी पार्टी तो कहने के बजाय करने में विश्वास रखती है. बीजेपी और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि आपने देखा होगा कुछ लोगों के द्वारा आदिवासी विश्वास रैली तक का आयोजन किया जाता है इसकी जरूरत क्या है एक तरफ आदिवासियों के हक और दूसरी तरफ उनके हक और अधिकार को आप मरते हैं.


राज्य का विकास कैसे हो इस पर ध्यान केंद्रित         


वहीं बीजेपी सांसद संजय सेठ ने कहा कि हमारी पार्टी तो सबको समान रुप से लेकर चलती है. आदिवासी भाई बहन की बात करें तो उनको आगे बढ़ाने के लिए पीएम ने क्या नहीं किया. सबको बस एक ही बात का ध्यान रखना चाहिए झारखंड कैसे आगे बढ़े. राज्य का विकास कैसे हो इस पर ध्यान केंद्रित करें.


इनपुट- कुमार चंदन


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